________________ 298 ज्ञानानन्द श्रावकाचार कुटुम्ब आदि के बडे पुरुषों को इनका स्वरूप कभी पूछा तब किसी ने तो कहा कि परमेश्वर कर्ता है, किसी ने कहा कर्म कर्त्ता है, किसी ने कहा हम तो जानते नहीं है / कभी किसी अन्य मत के गुरु अथवा ब्राह्मण को महासिद्ध अथवा विशेष पंडित जानकर उनसे पूछा तब किसी ने कहा कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश ये तीन देव इस सृष्टि के कर्ता हैं, कोई कहता राम कर्ता हैं, कोई कहता है बडे में बडी भवानी है वह कर्ता है / कोई कहता नारायण कर्ता हैं। बेमाता लेख (भाग्य) लिखती है, धर्मराज लेखा (हिसाब) लेते हैं, यम का रथ प्राणी को (दूसरी पर्याय के लिये) ले जाता है, शेषनाग पृथ्वी को फण पर धारण किये हैं / इसप्रकार वस्तु स्वरूप भिन्न-भिन्न बताते थे / कोई भी ठीक एक बात कहता नहीं था / यह न्याय ही है कि सच्चे हों तो सब (वस्तु स्वरूप को) एकरूप ही कहें तथा जिन्हें कुछ भी सच्ची जानकारी नहीं है एवं अन्दर में मान कषाय विद्यमान है उसका आश्रय करके चाहे जैसा वस्तु का स्वरूप बताते हैं, जो अनुमान (तर्क) से प्रत्यक्ष विरुद्ध होता है / अत: हमें सदैव इस बात की व्याकुलता रहती थी, संदेह मिटता नहीं था। ___ कभी ऐसा विचार होता था कि यहां कुछ (धर्म अर्थात पुण्य) साधन करने पर बाद में उसके फल में तो राजपद पाते हैं, यहां पाप कर पुनः नरक जाते हैं तो ऐसे धर्म से भी क्या सिद्धि हुई ? ऐसा धर्म करना चाहिये जिससे संसार के सारे दु:खों से निवृत्ति हो जावे / ऐसा विचार करतेकरते ही आयु बाईस वर्ष की हो गयी। ___ उस समय साहिपुरा (शाहपुरा) नाम के नगर में नीलापति नाम के साहूकार का संयोग हुआ / उसे शुद्ध दिगम्बर धर्म का श्रद्धान था / देव, गुरु, धर्म की प्रतीति थी। आगम, अध्यात्म शास्त्रों का पाठी था / षटद्रव्य, नव पदार्थ, पंचास्तिकाय, सप्त तत्व, गुणस्थान, मार्गणास्थान, बंधउदय-सत्व आदि चर्चा का पारगामी, धर्म की मूर्ति, ज्ञान का सागर था। उसके तीनों पुत्र भी विशेष धर्म बुद्धि वाले थे तथा अन्य भी पांच, सात,