________________ कुदेवादि का स्वरूप 291 नगर के लोग यह प्रार्थना करने लगे कि यदि कोई देव ऐसा कर रहा हो तो वह प्रकट हो, वह जो कहेगा, हमें मंजूर है / वह व्यंतरी प्रकट हुई तथा होली का सारा वृतान्त कहा / नगर के लोगों ने कहा कि तुम हमें जो आज्ञा दोगी वही हम करेंगे / कुछ हट करने के पश्चात व्यंतरी ने कहा कि लकड़ी की होली बनाओ, उसके चारों ओर फूस डालकर जला दो एवं इसे लेकर सारे नगर में घूमो तथा यह वृतान्त सब से कहते फिरो, उसे अपमानित करो, सब अपने सर पर धूल डालो तथा नहाओ एवं प्रति वर्ष ऐसा दोहराओ / भय के मारे लोगों ने ऐसा ही किया। जीवों को ऐसी ही विषय वासना की चेष्ठायें सुहाती हैं / जैसे “भूलै चोर कटारी पाछे' (भूल से चोरी कर लेने पर जैसे कटारी खाने का दंड भुगतना पडता है) वैसे ही यह निमित्त बना / अब इस प्रवृत्ति को मिटाने में कौन समर्थ है ? तब से यह होली समस्त जगत में फैल गयी तथा अब तक चली आ रही है / इसीप्रकार गणगौर, राखी, दिवाली आदि इसप्रकार की नाना प्रवृत्तियां जगत में फैली हैं / अब इनके निवारण में कौन समर्थ है। ___ जीवों की अज्ञानता का और भी स्वरूप कहते हैं - शीतला, बोदरी, फोडा आदि शरीर में रक्त विकारों से होते हैं, इन्हें भी लोग बहुत आदर से पूजते हैं / पर देखो ! इनको पूजते-पूजते भी पुत्र आदि मर जाते हैं तथा जो नहीं पूजते उनके पुत्र आदि जिन्दा रहते देखे जाते हैं / फिर भी वे अज्ञानी जीव इन्हें उसीप्रकार मानते पूजते हैं तथा कहते हैं कि छाणों (गोबर को थाप कर सुखा कर जलाने हेतु बने - कंडों) को जलाने के लिये रोडी कौन वापरे (खरीदे - इकट्ठी) करे / देहरी, पथवारी, गाडे की पेंजनी (चिकनाई), दवात, बही, कुलदेवी, चौथ, गाज, अणंत इत्यादि कोई वस्तु ही नहीं (जीव नहीं हैं, पुदगल हैं)। पथवारी को बहुत अनुराग से पूजते हैं / सती, अहूत पितर आदि को पूजते हैं / इत्यादि कुदेवों का कहां तक वर्णन करें ? जिनका कुदेव ही सर्व जगत (सब कुछ) है, ऐसा सारा जगत ही कुदेवों को पूजता है, उनका