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________________ 273 कुदेवादि का स्वरूप किये ? कोई कहे जैसा शुभाशुभ कर्म जीव ने किया, वैसा ही सुख, दु:ख देने के लिये पैदा किये, तब इसमें परमेश्वर का कर्तव्य कर्त्तापना कहां रहा, कर्म ही का कर्तव्य कर्त्तापना हुआ / अत: या तो परमेश्वर का ही कर्तव्य कहो, या कर्म का ही कर्तव्य कहो अथवा दोनों का मिश्रित कर्तव्य कहो / मेरी मां है तथा वह बांझ है, ऐसा तो बन सकता नहीं। ___यदि पहले जीव नहीं था, तो ये शुभाशुभ कर्म किसने किये थे जिससे भिन्न-भिन्न (प्रकार के) जीव बनाये ? इसप्रकार इस सृष्टि का कोई कर्ता नहीं है, यह ही संभव है / जगत में जिसे दो-चार कार्य भी करने होते हैं तो उसे आकुलता विशेष उपजती है तथा वह आकुलता ही परम दुःख है / ऐसे परमेश्वर का निरन्तर तीन लोक में अनन्त जीव, अनन्त पुद्गल आदि पदार्थों का कर्ता होना, उन्हें भिन्न-भिन्न प्रकार परिणमन कराना तथा उनकी अलग-अलग याद रखना, अलग-अलग सुख दुःख देना, उनके लिये महा खेदखिन्न होना, इसप्रकार के कर्ता के दुःख का क्या पूछना ? इसप्रकार तो सर्वोत्कृष्ट दु:ख परमेश्वर के हिस्से में आया, तब फिर परमेश्वरपना कैसे रहा ? तथा एक पुरुष से इतने कार्य कैसे बन पडें ? ___ कोई कहे कि जैसे राजा के अनेक प्रकार के नौकर भिन्न-भिन्न कार्यों को करते हैं तथा राजा प्रसन्नता पूर्वक महल में बैठा रहता है, उसीप्रकार परमेश्वर के अनेक नौकर हैं, वे सृष्टि को उत्पन्न करते हैं तथा विनाश करते है / उससे कहते हैं - हे भाई ! यह तो संभव नहीं है / जिसको (जिस कार्य को) नौकर ने किया उसका कर्ता परमेश्वर को क्यों कहते हो ? परमेश्वर ने कच्छ, मच्छ आदि बैरियों के संहार के लिये तथा भक्तों की सहायता के लिये चौबीस अवतार लिये। आकर बहुतों के खेतों में अन्न उपजाया, नरसिंह भक्त के यहां आकर माहरा (भात) भरा, द्रौपदी का चीर बढाया तथा टीटोडी को अंग की सहायता की, हाथी को कीचड में से निकाला, ऐसे विरुद्ध वचन यहां संभव नहीं हैं (खुद क्यों आया, नौकरों को भेज देता)।
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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