________________ वंदनाधिकार किंचित न्यून (कम) हैं। सर्वज्ञ देव ने (सर्व सिद्धों को) प्रत्यक्ष विद्यमान भिन्न-भिन्न देखे हैं। सिद्ध भगवान और कैसे हैं ? उनने अपने ज्ञायक स्वभाव को प्रकट किया है तथा प्रति समय षट प्रकार हानि-वृद्धि रूप अनन्त अगुरुलघु गुण रूप परिणमन करते हैं / अनंतानंत आत्मिक सुख का भोग करते हैं, स्वाद लेते हैं पर तृप्त नहीं होते हैं अथवा अत्यन्त तृप्त हो रहे हैं / अब कुछ भी इच्छा (चाह) बाकी नहीं रही है / कृत्यकृत्य हो चुके हैं, जो कार्य करना था वह कर चुके हैं। परमात्म देव और कैसे हैं ? जिनके स्वभाव से ज्ञानामृत रूप रस झर रहा है, उसमें स्वसंवेदन के द्वारा आनन्द रस की धारा उछल रही है तथा उछल कर अपने स्वभाव में ही लीन हो जाती है / अथवा जिसप्रकार शक्कर की डली जल में घुल जाती है उसीप्रकार उपयोग स्वभाव में घुल गया है, वापस बाहर निकलने में असमर्थ है / निज परिणति ( अपने स्वभाव ) में रमण करते हैं / एक ही समय में उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य रहते हैं / पर-परिणति से भिन्न अपने ज्ञान स्वभाव में तथा ज्ञान परिणति में प्रवेश किया है, ऐसे एकमेक (घुलमिल) होकर अभिन्न परिणमन करते हैं / ज्ञान में तथा परिणति में द्वैत को स्थान नहीं रहा ऐसा अद्भुत कौतुहल सिद्ध स्वभाव में होता है। ___ सिद्ध और कैसे हैं ? अत्यन्त गंभीर हैं तथा उदार हैं, उनका स्वभाव उत्कृष्ट है। सिद्ध और कैसे हैं ? आकुलता रहित हैं, अनुपम हैं, बाधा रहित हैं, स्वरस से पूर्ण हैं, ज्ञानानन्द से हर्षित हैं अथवा सुख स्वभाव में मग्न हैं / ___ सिद्ध और कैसे हैं ? अखंड हैं, अजर हैं, अविनाशी हैं, निर्मल हैं, चेतना स्वरूप हैं, शुद्ध ज्ञान मूर्ति हैं, ज्ञायक हैं, वीतराग हैं, सर्वज्ञ हैं - तीन काल सम्बन्धी सर्व चराचर पदार्थों की सर्व द्रव्य-गुण-पर्यायों को