________________ सम्यग्चारित्र 163 छूटने पर धर्म के बिना नीच पर्याय ही मिलेगी, अत: गाफिल होना योग्य नहीं है / गाफिल पुरुष ही दगा खाता है, दुःख पाता है तथा बैरियों के वश पड जाता है। इत्यादि विशेष विचार कर सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चारित्र रूप यह रत्नत्रय धर्म जो परम निधान, सर्वोत्कृष्ट, उपादेय है तथा जिसकी प्राप्ति का होना महादुर्लभ जान कर जिसप्रकार भी हो सके रत्नत्रय का सेवन करना / ऐसा (बोधि) दुर्लभ भावना का स्वरूप जानना / उसे महादुर्लभ दिखाकर उसमें रुचि कराई / इति बारह भावना का कथन पूर्ण हुआ। बारह तप आगे बारह प्रकार के तप का स्वरूप कहते हैं : (1) अनशन तप :- आहार चार प्रकार का है :- (अ) अशन (ब) पान (स) खाद्य (द) स्वाद्य / पेट भर खाना खाने को अशन कहते हैं / जल दुग्ध आदि पीने को पान कहते हैं / खाद्य नाम रबड़ी, मलाई (लेह्य) पदार्थ आदि और स्वाद्य मुख शुद्धि को कहा जाता है / इन चारों को जिव्हा इन्द्रिय का ही विषय जानना चाहिये, अन्य इन्द्रियों का नहीं / अन्य इन्द्रियों के विषय भी अन्य ही हैं। इन चार प्रकार के आहार के त्याग को अनशन तप कहते हैं। (2) अवमोदर्य :- क्षुधा निर्वृत्ति से एक ग्रास, दो ग्रास आदि घटते-घटते भोजन की पूर्णता से कम एक ग्रास मात्र तक भोजन करने को अवमोदर्य अथवा ऊनोदर तप कहते हैं। (3) व्रत परिसंख्यान तप :- आज इस विधि से ही भोजन मिले तो भोजन लूंगा, नहीं मिले तो मेरे आज आहार पानी का त्याग है, ऐसी अटपटी प्रतिज्ञा करना, उसे व्रत परिसंख्यान तप कहते हैं / (4) रस परित्याग तप :- एक रस, दो रस आदि छहों रसों तक का त्याग करना, उन रसों में मन की लोलुपता को मिटाना, उसे रस परित्याग तप कहते हैं।