________________ 150 ज्ञानानन्द श्रावकाचार ___ यहां कोई प्रश्न करता है कि सात तत्त्वों का श्रद्धान करने को ही मोक्षमार्ग कहा, अन्य प्रकार क्यों नहीं कहा ? उसको उत्तर देते हैं जैसे किसी दीर्घ रोगी अथवा पुरुष को उसके रोग की निर्वृत्ति के लिये कोई सयाना वैद्य उसके चिन्ह देखे, प्रथम तो रोगी की आयु क्या है यह देखे। फिर रोग का निश्चय करे, फिर यह रोग किस कारण हुआ है यह जाने तथा किस प्रकार रोग मिट सकता है उसका उपाय विचारे / तब रोग अनुक्रम से कैसे मिटे उसका उपाय जाने, इस रोग के कारण कैसे दु:खी है तथा रोग मिटने पर कैसे सुखी होगा यह जाने? फिर जैसा उसका निज पूर्व स्वभाव था वैसा ही रोग रहित उसे करदे / उसके सम्बन्ध में इसप्रकार जानने वाला वैद्य हो, उसी से रोग मिट सकता है, अनजान वैद्य से रोग कदापि नहीं मिट सकता / अनजान वैद्य तो यम के समान है / ___ उसीप्रकार आस्रव आदि सात तत्त्वों के ज्ञान से ही संसार का रोग जाना संभव है, वह बताते हैं - सभी जीव संपूर्ण रूप से सुखी होना चाहते हैं तथा संपूर्ण सुख का स्थान मोक्ष है, अत: मोक्ष के ज्ञान बिना कैसे बने ? तथा मोक्ष तो बंध के अभाव को कहते हैं, पहले से बंधा हो तो ही (बंध का अभाव होकर) मोक्ष हो, अत: बंध का स्वरूप जानना आवश्यक है। बंध का कारण तो आस्रव है, आस्रव के बिना बंध नहीं होता, अत: आस्रव का स्वरूप जाने बिना कैसे बनेगा ? आस्रव के अभाव के लिये संवर कारण है, संवर के बिना आस्रव का निरोध नहीं होगा, अतः संवर अवश्य जानने योग्य है / बंध का अभाव निर्जरा के बिना नहीं होता, इसलिये निर्जरा को जानना योग्य है। इन पांचों तत्त्वों का आधारभूत जीव-अजीव द्रव्य है, अतः जीव तथा अजीव का स्वरूप जानना आवश्यक है / इसप्रकार सातों तत्त्वों को जाने बिना मोक्षमार्ग की सिद्धि कैसे हो ? अर्थात् नहीं हो सकती / इस ही ऋण “तत्त्वार्थ सूत्र” में “तत्त्वार्थ श्रद्धानं सम्यक्दर्शनम्' कहा है / यह