________________ विभिन्न दोषों का स्वरूप 125 (तीन दिन के उपवास) आदि बहुत दिनों के उपवास धारी अन्य कोई साधु हो तो उसके पेट में डाल दिया जावे तो कोई दोष न होना, साधु का पेट तो रोडी (पत्थर) को समान होना / ___ भावार्थ:- तेले आदि बहुत उपवास के दिनों में अन्य साधु का बचा हुआ भोजन लेना उचित है, इससे उपवास भंग नहीं होता, यह निर्दोष आहार है / नौ पानी आहार करने का अर्थ यह है कि जल की विधि न मिले तो मूत्र पीकर तृषा बुझावे, साधु को स्वाद से क्या प्रयोजन। नौ जाति के विधि भेद से घी, दूध, तेल, मीठा, मद, मांस, शहद एवं एक अन्य अथवा कोई श्रावक ने नौ पानी का आहार पचाया हो वह भी साधु को लेना योग्य है। निंदक को मारने में पाप नहीं है, युगलिया मर कर नरक भी जाते हैं। भरतजी ने अपनी बहन ब्राह्मी को विवाह के लिये अपने घर में रख लिया। भरतजी को गृहस्थ अवस्था में महलों में ही आभूषण पहने भावना भाने से केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। महावीर ने जन्म कल्याणक के समय बालक अवस्था में ही पांव के अंगूठे से सुमेरु पर्वत को कंपित कर दिया। पांच पांडवों की एक पत्नी द्रोपदी पंचभर्तारी होने पर भी शीलवती महासती हुई / कुबडे शिष्य के कंधे पर गुरु बैठा तथा गुरु द्वारा उल्टे शिष्य के सर पर डंडे की चोट करते जाने पर शिष्य ने क्षमा धारण की, उस क्षमा के प्रभाव से शिष्य को केवलज्ञान हो गया, तब शिष्य सीधा होकर चलने लगा तो गुरु ने पूछा शिष्य सीधा क्यों गमन करने लगा है, तुझे केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है क्या ? शिष्य ने कहा गुरु के प्रसाद से / ___जैमाली जाति का माली था उसने महावीर तीर्थंकर की बेटी से शादी की। कपिल नारायण को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ तब कपिल नारायण ने नृत्य किया, धातकी खण्ड से इस क्षेत्र में आया / वसुदेव के बहत्तर हजार स्त्रियां हुई / मुनि स्पर्श- शूद्र के यहां आहार ले सकते हैं, यदि कोई मांस