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________________ 96 ज्ञानानन्द श्रावकाचार गोरस की शुद्धता की क्रिया आगे दूध, दही, छाछ, घी की क्रिया लिखते हैं / भेड, ऊंटनी आदि के दूध तो लेने योग्य ही नहीं है / इनमें दूध दुहते-दुहते त्रस जीव उत्पन्न हो जाते हैं / गाय भैंस का दूध लेने योग्य है / दूध दुहने वाले के हाथ छने पानी से धुलाकर तथा गाय-भैंस के आंचल को धुलाकर भली प्रकार से मंजे बर्तन को जल से धोकर उसमें दूध निकलवाना चाहिये तथा कपडे से उसे दूसरे बर्तन में छानकर दुहने के दो घडी के भीतर-भीतर उसे पी लेना चाहिये अथवा दो घडी के अन्दर-अन्दर ही गर्म कर लेना चाहिये। दो घडी से अधिक वह दूध कच्चा रह जाता है तो उसमें नाना प्रकार के त्रस जीव उत्पन्न हो जाते हैं / अत: दो घडी के भीतर-भीतर ही गर्म कर लेना उचित है / जब जमाना हो तो पहले उस दूध में आंवली आदि खटाई अथवा रुपया डाल कर जमाना चाहिये। उसकी (ऐसे जमें दूध अर्थात दही की) मर्यादा आठ पहर की है / आज के जमे दही को कपडे में बांध (उसे लटका देने पर उसका पानी निकल जाने के बाद) उसकी मंगोडी (छोटे-छोटे टुकडे) तोड कर सुखा लेना चाहिये। अन्य दूध को उसी मंगोडी का जामन देकर जमा लेना चाहिये। ऐसा दूध, दही, काम लेने योग्य है / सोंठ अथवा खटाई से अथवा जस्ता, चांदी के बर्तन में (रखने से) दूध जम जाता है। कुछ दुराचारी लोग जाट, गूजर आदि अन्य जाति के लोगों से दूध, दही, छाछ लाकर खाते हैं, वह धर्म में तथा जगत में महानिंद्य है। __ ऐसे शुद्ध दूध दही को ही बिलो कर उसमें से निकले लूने घी (मक्खन) को तो तुरन्त अग्नि पर गर्म करने के बाद खाना चाहिये। छाछ को संध्या के समय तक काम में लेलेना चाहिये, रात में न रखें / रात की पडी छाछ सुबह अनछने जल के समान है / इसप्रकार दूध, दही, छाछ, घी की क्रिया जानना।
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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