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________________ 82] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान 1888888888888888888 तापर जिनबिंब बिराजमान, शत आठ अधिक सो है महान। छबि निरखत अतिआनंद होय,लखरूप छिपत मकरंद सोय॥ सुरपतिखगपति नावत सुसीस जै जै जिनवर त्रिभुवनके ईस। सब देवी देव करें सु गान, इन्द्रानी इन्द्र नचैं जु जान॥ ता थेई थेई थेई ध्वनि रही पूर,द्वै रहो सु झुरमुट जिन हजूर। यह कौतुक देखत हैं जु आय, सब देवी देवन चतुर काय॥ अब हमको तारो परम देव, तुम चरणनकी हम करत सेव। जग जाल महा दुखकों निधान,ता काढो प्रभु अरज मान॥ पत्ता--दोहा विदिशा पूजें मेरू की, कहै चार गजदंत। जिनमंदिर पूजा बनी, बांचो भविजन संत // 23 // इति जयमाला। अथाशीर्वाद-कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम ताको पाठ पढ़े मन लाय। जाके पुन्य तनी अति महिमा, वरणन को कर सके बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरु संपति, बाढे अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस परभव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इत्याशीर्वादः इति विजयमेरुकी चार विदिशा मध्ये चार गजदंत पर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्।
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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