________________ 70] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ================ == पद्धडी छन्द जै मेरु सुदर्शन गिर महान, सब गिरवरमें भूपत समान। जैताकी दक्षिणदिश विशाल,तहांकुलगिर तीनकहेविशाल॥ पहलो निषद्ध गिर है उतंग, दूजो महा हिमवन अति सुचंग। तीजोहिमवनगिर है प्रसिद्ध,बहुरचितखचित द्युति स्वयंसिद्ध॥ अब उत्तर दिशके सुनो नाम, पहिले गिरनील महा सु ठाम। दूजो गिर रुक्म महाविचित्र, तीजो सिखरिन गिर है पवित्र। एही घट कुलगिर हैं महान, तिनपद द्रह सुन्दर सजल बान। ता बीच कमल शोभेभिराम, जामैं कुल देवनके सुधाम॥ यह विधिकुलगिरशोभे सुसार,बहु शिखरकूट पंकत अपार। तिनकूट मध्य शोभे सिंगार, श्री सिद्धकूट उन्नत निहार॥ तहां जिनमंदिर वरणे पुरान, तामैं जिनबिंब बिराजमान। प्रतिमा शत एक अधिकसुआठ,वसुमंगल द्रव्य बने सुठाठ॥ सब समोसरण विधकही जोय,देखे भविसम्यक दरश होय। जै सुर गण मिल पूर्जे सदैव, जिन भक्त हिये धारै सु जीव॥ जै निरजर निरजरनी सु आय, खेचर खेचरनी शीस नाय। ना. गावै दे दे सुताल, झुक झुक जिनमुख देखें संभाल॥ जै द्रुम द्रुम द्रुम बाजै मृदंग, इन्द्रानी इन्द्र नचै सु संग। जै थेइ थेइ थेइ धुम रही पूर, बन रहो सुझुरमुट जिन हजूर॥ यह विधि वर्णन बहु है अपार, सुरगुरु वरनत पावै न पार। जै जै जै जिनवर परम देव, तुम चरणनकी हम करत सेव।