________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [25 2222222222 दक्षिण दिश सरस अनूप, मेरु सुदर्शनते, ___ अति हर्षित सुर खग भूप, श्री जिन पर्शनते। पांडुकवनमें जिन भौन, शोभा को वरने, इन्द्रादिक पूजन तौन, पाप तिमिर हरने // 26 // ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पांडुक वन सम्बन्धी दक्षिणदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१४॥ अर्घ॥ पश्चिमदिश मेरु विशाल पांडुकवन सोहै, जिनमंदिर बनो विशाल, सुरनर मन मोहे। तहां ध्यावत सुर खग जाय, अर्घ लिए करमें, ___ हम जिनपद शीस निवाय, पूजत निज घरमेंसारखा __ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पांडुक वन सम्बन्धी पश्चिमदिर्श सिद्धकूट, जिनमंदिरेभ्यो॥१५॥ अर्घ॥ है सुमेरु उत्तर भाग, पांडुकवन प्यारो, तामैं जिन भवन सुहाग, सुन्दर मन धारो। तहां सुरनर गावत, गीत तन मन हरष धरै, वसु अरघ चढावत प्रीत, पुन्य भण्डार भरै॥२८॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पांडुक वन सम्बन्धी उत्तरदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१६॥ अर्घ॥ अथ जयमाला-दोहा मेरु सुदर्शन जिन भवन, सोलह वरने गाय। तिनकी भवि जय माल सुन, परम हरष उर लाय॥ पद्धडी छन्द जै मेरु सुदर्शन है अनूप, जानो सब गिरिवरको सु भूप। ताको कछु वर्णन करूं गाय, वन भद्रशाल भूपर सुहाय॥