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________________ 326] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान उत्तर दिश सु विशाल, रूचिक नाम गिरवर तने। जिनवर भवन त्रिकाल, पूजो भविजन अर्घसों॥१४॥ ___ॐ ह्रीं रूचिक द्वीपके उत्तर दिश रूचिकगिर पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घा अथ जयमाला-दोहा रूचिक द्वीपके बीचमें, पर्वत रूचिक विशाल। जिनमंदिर चारों दिशा, तिनकी सुन जयमाल // 15 // जै जोजन सत्रह सरव गाय, जै अरब सुइकतालिस मिलाय। जै सत्रह दोय कहें किरोर, जै षोड़श सहस सु अधिक जोर॥ यह रूचिक द्वीप आया न जान, इक इकके भाषे हैं पुरान। तिस बीच रुचिकगिर परोफेर, चारों दिशा आधो दीप घेर॥ चवरासी सहस कहें उतंग, जोजन कञ्चनके वरन रंग। दिश आठकूट चालिस सु चार, तहां रहे देव छप्पन कुमार। जिन गर्भजन्मको समय पाय, जिन माताको सेवै सु आय। अर कूट चार गिरके सु अंत, तहां देव चार सु वसो वसंत॥ जै चारों दिशमें कूट चार, है सिद्धकूट तसु नाम सार। तापर जिनमंदिर शोभमान, सब समोसरण रचना समान॥ तहां श्रीजिनबिंब विराजमान,शतआठ अधिक प्रतिमा प्रमान। जै रत्नमई द्युति अतिविशाल, सुरइंद्र चरनपूजत त्रिकाल॥ जै नृत्य करत संगीत सार बाजे बाजत अनहद अपार। जै निजगुण गावै अमर नार, सुरताल मधुर ध्वनिको संवार॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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