________________ 316] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ==================== सर्वतोभद्र वापी मुखकोन वेष, रतिकरगिर प्रथम कहो जिनेश। जिनमंदिर सुरपूजत सुजाय, हम जजत सुजिनपद शीशनाय॥ ___ॐ ह्रीं नंदीश्वर द्वीपके उत्तर दिश सर्वतोभद्र वापी मुख प्रथम रतिकर गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१२॥ अर्घ॥ सर्वतोभद्र वापी विदिशा सुलाल, रतिकरगिरि दूजे त्रिकाल। जिनमंदिर सुरपूजत सुजाय, हम जजतसु जिनपद शीशनाय॥ ___ॐ ह्रीं नंदीश्वर द्वीपके उत्तर दिश सर्वतोभद्र वापी मुखकोण द्वितीय रतिकर गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१३॥ अर्घ॥ सोरठा अष्टम द्वीप निहार, चारों दिश बावन कहें। जिनमंदिर सुखकार, पूजों वसुविध अर्घसों॥२४॥ ___ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके चारों दिशा संबंधी चार अंजनगिरि सोलह दधिमुख बत्तिस रतिकर गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१४॥ पूर्णार्प जयमाला-दोहा नन्दीश्वर उत्तर दिशा जिनमंदिर सु विशाल। बने अकीर्तम साश्वते, तिनकी यह जयमाल॥२५॥ पद्धडी छन्द जै जै श्री अष्ट मद्वीप जान। जै ताकी उत्तर दिश वखान॥ जै तेरह बीच अंजन सु नाम। ता गिरिपर श्री जिनवर सु धाम // 26 //