________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [311 areraruaareerNareerNaareerNNNN चारों वापी बीचमें जग सार हो, दधिमुख गिर दीपंत। वापी विदिशामें भली जगसार हो, दोय रतिकर शोभंत॥ शोभंत उपवन दिशा चारों, एक एक वापी परै। जोजन प्रमान सु लाख कानन, देव नित क्रीडा करे॥ यह भांत तेरह गिर कहे, तिस शिखर मंदिर जिन तनो। सब समोसरन समान रचना, स्वयंसिद्ध सुहावनो॥ सिंहासन पर कमल है जगसार हो, तापर श्री जिनराय। मंगल दर्व घरे जग सार हो, प्रातिहार्य सुखदाय॥ सुखदाय रत्नमई सु प्रतिमा, आठ अधिक सु एकसै। आसन कमल वैराग्य भाव सु देव दर्शन अघ नसै॥ सौ पांच धनुष उतंग सोहै इन्द्र नित पूजा करें। हम शक्तिहीन सुदीन है, जिनभक्तिवश पायन परें / घत्तो-दोहा-पश्चिम दिश तेरह भवन, जिनवर बिंव विशाल। तिनकी वर जयमाल यह, बांचत भविक सुलाल॥ इति जयमाल। अथाशीर्वादः कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढ़े मनलाय। जाके पुन्यतनी अति महिमा, वरणन को कर सकै बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरू संपति, बालै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस पर भव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ // इति आशीर्वादः॥ इति श्री नंदीश्वर द्वीपके पश्चिम दिश त्रयोदश जिनमंदिर सिद्धकूट विराजमान ताकी पूजन पाठ सम्पूर्णम्।