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________________ 300] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ================ = पहलो कोण सु जान नन्दना तनो। रतिकर पर जिनधाम बहुत अद्भुत बनो। सुर. // 22 // ___ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके पूरवदिश नन्दपेना वापी मुख कोण प्रथम रतिकर गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१२॥ अर्घ // नन्दना वापी मुख कोण सु दूसरो। रतिकर पर जिनधाम लाल पांयन परो॥ सुर. // 23 // ___ ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके पूरवदिश नन्दपेना वापीमुख कोण द्वीतिय रतिकर गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१३॥ अर्घ॥ अथ जयमाला-दोहा श्री नन्दीश्वर द्वीपके, पूरव दिश सु विशाल। तेरह श्री जिनभवन हैं, जय जय जय जयमाल // 24 // पद्धडी छन्द जय जय श्री अष्टम दीप सार, सब दीपनमें महिमा अपार। जै ताकी पूरव दिश मंझार, जै तेरह जिनमंदिर निहार॥ जै प्रथम सु अञ्जनगिर महान, जै श्यामवरन वरनै पुरान। जै उन्नत चौरासी हजार, जोजन जिनभवन तहां निहार॥ ता गिरके चारों दिश सुजान, जै इक इक वापी सजल थान। ता बीचसुदधिमुख गिर विशाल,दधिवरन सुउज्वल है रिशाल॥ जै जोजन उन्नत दश हजार, जें तापर श्री जिनभवन सार। जै वापिनकी विदिशाजु होय,तहां इकर रतिकर गिरजु सोय॥ जै अहन वरन जोजन हजार, उन्नत भावे जिनवर विचार। तापर जिनमंदिर हैं अनूप, जै पूजा करत, सु अमर भूप॥ जै वने अकीर्तम स्वयंसिद्ध जिनभवन विराजित हैं प्रसिद्ध। नानाविध रतन लगे अपार, महिमाकों वरनत लहै पार।
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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