________________ 298] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान =========== ===== अथ प्रत्येकार्घ-अडिल्ल है नन्दीश्वर द्वीप दिशा पूरव जहां। अंजनगिरके शिखर भवन जिनवर तहां॥ सुरपति पूजन जांहि हरष मनमें धरै / हमें शक्ति सो नांहि यहां पूजन करें। ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके पूरवदिश अंजनगिरि पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ नंदी वापी बीच सु दधिमुख गिर कहो। तापर श्री जिनभवन सरस उपमा लहो॥ सुरपति.॥१२॥ ___ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके पूरवदिश नन्दी वापी बीच दधिमुख गिरि पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 2 // अर्घ // नन्दी वापी कोण प्रथम रतिकर परो। ता ऊपर जिनधाम विराजत है खरो॥ सुरपति.॥१३॥ ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके पूर्वदिश नन्दी वापी मुख कोण प्रथम रतिकर पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ // नंदी वापी कोण दुतिय रतिकर महा। मंदिर श्री जिनराज तनो तापर कहा // सुरपति.॥१४॥ ___ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके पूर्व दिश नन्दी वापी मुख कोण दुतिय रतिकर गिरपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ // नंदवती वापी बीच दधिमुख देखिये। पर जिनवरभवन सु अद्भुत पेखिये॥ सुरपति.॥१५॥ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके पूरवदिश नंदावती वापीबीच दधिमुख सतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥५॥ अर्घ /