________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [285 ==================== चन्दन केशर घसत मिलाय, श्री जिन चरनन देत चढ़ाय। परम. // इक्ष्वाकार. // 3 // ॐ ह्री. चंदनं॥ उज्वल अक्षत ले सुख दास, अक्षय पदको पावत वास। परम. // इक्ष्वाकार. // 4 // ॐ ह्रीं. अक्षतं॥ कमल केतकी अति महकाय, जिनपद पूजो प्रीत लगाय। परम. // इक्ष्वाकार. // 5 // ॐ ह्रीं. पुष्पं // नानाविध पकवान बनाय, ले जिन चरनन पूजत जाय। परम. // इक्ष्वाकार. // 6 // ॐ ह्रीं. नैवेद्यं॥ मणिमई दीपक जोत जगाय जजत जिनेश्वर मंगल गाय। परम. // इक्ष्वाकार. // 7 // ॐ ह्री. दीपं॥ दस विध धूप सुगंधित लाय, खेवत भवि जिनमंदिर जाय। परम. // इक्ष्वाकार. // 8 // ॐ ह्रीं. धूपं॥ फल सुन्दर नैनन सुखदाय, जिनपद पूजत शिवपद पाय। परम. // इक्ष्वाकार. // 9 // ॐ ह्री. फलं॥ आठ दर्व मिल अर्घ चढ़ाय, बल बल जात लाल सिर नाय। परम. // इक्ष्वाकार. // 10 // ॐ ह्रीं. अर्घ॥ दोहा-पुष्करार्ध जुग मेरुके, दक्षिण दिश सुखकार। इक्ष्वागिरपर जिन भवन, अर्घ जजो पर थार॥११॥ ॐ ह्रीं पुष्करार्ध द्वीपमध्ये मंदिर विद्युन्माली मेरुके दक्षिण दिश दोनों भरतक्षेत्रके बीच इक्ष्वाकार पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥ अर्घ॥ अथ जयमाला-दोहा पुष्करार्घ वर दीपमें, दक्षिण दिश सु विशाल। इक्ष्वागिरपर जिन भवन, सुन तिनकी जयमाल // 12 //