________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [283 SNANASANANNEINNNNNNNNNNNN लख ताके उत्तर दिश प्रवीन,गिर नील रुक्म सिखरन सुतीन। येही षट्कुल गिर हैं प्रसिद्ध, सब वरणन जानो स्वयंसिद्ध॥ जै तिनपर जिनमंदिर अनूप जै पूजा करत सु अमर भूप। जै समोसरन रचना समान, बनरहें तहां अद्भुत सुजान॥ जै रत्नमई प्रतिमा जिनेन्द्र, शतआठ अधिक भाषै जिनेंद्र। जै सुर विद्याधर भक्त लीन, जिनराज सुगुण गावै नवीन॥ जै नृत्य करत बाजे बजाय, जै थेई थेई थेई धुन रही छाय। यह अद्भुत ठाठ बनो विशाल,सुन श्रवण माथनावतसुलाल॥ घत्ता-दोहा षट्कुलगिरकी आरती, पूरन भई रिशाल। जो वाचै मन लायकै तिनके भाग विशाल॥३२॥ इति जयमाला। अथाशीर्वाद - कसमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढ़ें मन लाय। जाके पुन्य तनी अति महिमा, वरणन को कर सके बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरु संपति, बाढे अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस पर भव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इत्याशीर्वादः। इति श्री विद्युन्माली मेरु संबंधी षट्कुलाचल पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्। इति श्री पुष्करार्घ द्वीपमध्ये पश्चिमदिश विद्युन्माली मेरु संबंधी अठत्तर जिनमंदिर शाश्वते विराजमान तिनको पूजापाठ सम्पूर्णम्।