________________ 272] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ននននននននននននននននននន श्रीफल लौंग छुहारे पिस्ता, अति सुन्दर फल लेत मंगाय। श्री सर्वज्ञ प्रभुको पूजत, मनवांछित फल पावत जाय॥ पंचम गिरि. // 9 // ॐ ह्रीं. // फलं॥ अर्घ बनाय गाय गुण प्रभुके, आठों दर्व सु देत मिलाय। भाव भक्तिसों पूजा करके लाल सु जिनपर बल बल जाय॥ पंचम गिरि. ॥१०॥ॐ ह्रीं. ॥अर्घ॥ अडिल्ल-छन्द दक्षिण भरत सु क्षेत्र मेरु पंचम तनो। श्वेत वरन वैताड़ कूट नौ सोहनो॥ सिद्धकूट तिस बीच, सु जिनमंदिर जहां। पूजो भविक त्रिकाल, अर्घ वसुविध तहां॥११॥ ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके दक्षिण दिश भरतक्षेत्र संबंधी रूपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥ अर्थ // अथ जयमाला-दोहा विद्युतगिरि दक्षिण दिशा, भरतक्षेत्र सु विशाल। रूपाचलपर जिनभवन सुन तिनकी जयमाल // 12 // पद्धडी छन्द जै पुष्करार्धवर दीप जान, जै ताकी पश्चिम दिश महान। जै विद्युन्माली मेरु सार, कंचन मणिमई वरनन अपार॥ जै ताकी दक्षिण दिश मंझार, तहा भरत क्षेत्र सुन्दर निहार। जहां छहों कालकी फिरन होय, कोडाकोड़ी दश उदधिसोय॥ जै तीन कालमें भोगभूम, तहां कल्पवृक्ष अति रहे झूम। जै जुगला धर्म रहै सदीव, सुख सहित रहै सबही सु जीव॥