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________________ श्री तेरहद्वीप पजा विधान [255 SareersharareaawaraaNRNNN पंचमगिर पश्चिम गिनो नाग नाम वक्षार / श्री जिनमंदिर जायकै, अर्घ जजू भर थार॥१७॥ ___ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी नाग नाम वक्षारगिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥७॥ अर्घ // पश्चिम विद्युन्मेरु के, देव नाम वक्षार / तापर जिनवर भवन लख, पूजो भवि उर धार॥१८॥ ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी देव नाम वक्षारगिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥८॥ अर्घ // अथ जयमाल - दोहा पंचमगिर पश्चिम दिशा, वसु वक्षार विशाल। तिनपर जिनमंदिर जजों, अब वरनूं जयमाल॥१९॥ पद्धडी छन्द जै जै श्री पंचममेरु सार, जै ताकी पश्चिम दिश विचार। जै षोड़श देश विदेह जान, जै तीर्थंकर दोय विरहमान॥ जै जै जिनदेव सुजस जिनेंद्र जै अजितवीर्य मुख पूरनचन्द। जै तिहुँ काल वानी खिरंत, जगजीव सुनत आनंद लहंत॥ जहां चौथो काल रहै सदीव तहां कर्मभूम वरतें सु जीव। सब पदवी धारक पुरुष जान, बलहर प्रतिहर चक्री महान॥ जै श्री मुनिराज करें विहार, धर्मोपदेश भार्डे विचार। जैताको भविजन सुनें कान, जै जिन आतमको धेरै ध्यान॥ जै शिवमारग वरतें प्रसिद्ध, भवि कर्म नाश गत लहैं सिद्ध। गिर आठपड़ो वक्षार सार, तिनपर जिनमंदिर द्युति अपार॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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