________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [239 Aarashararsaharararararararaaaaaa तिष्ठ ठः ठः स्थापनं / अत्र मम सन्निहितो भवर वषट् सन्निधिकरणं। स्थापनं। अथाष्टकं-जोगीरासा रजल जल ले क्षीरोदधिको, रतन कटोरी धारो। सरस मनोहर चरण जिनेश्वर, तिनपर लेकर ढारो॥ विद्युन्माली मेरु पांचमो, ताकी विदिशा चारो। गजदंत पर श्रीजिनमंदिर, पूजत भवि अघ टारो॥२॥ ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके अग्निदिश सौमनस // 1 // नैऋत्य दिश विद्युत्प्रभ॥२॥ वायव्य दिश मालवान // 3 // ईशानदिश गंधमादन नाम गजदन्त सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ जलं॥ मलयागिर करपूर सु चंदन केसर रंग सु गारो। जजत जिनेश्वरके पदपंकज भव आताप निवारो॥ विद्युन्माली. // 3 // ॐ ह्रीं. // चंदनं॥ मुक्ताफल सम उज्वल अक्षत, सुन्दर धोय धरीजे। श्री जिनवरके सन्मुख लेकर पुंज मनोहर दीजै॥ विद्युन्माली. // 4 // ॐ ह्रीं. // अक्षतं॥ कल्पवृक्षके फूल मनोहर, वरन वरनके लावो। श्री जिनचरनकमल तिन पूजो, हरष हरष गुण गावो॥ विद्युन्माली. // 5 // ॐ ह्री. // पुष्पं॥ बावर घेवर मोदक खाजे, ताजे तुरत बनावो। क्षुधा हरन रसना सुखदाई, श्री जिनचरन चढ़ावो॥ विद्युन्माली. // 6 // ॐ ह्रीं. // नैवेद्यं॥