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________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [217 ParaTrearSSROOTrarwarerarera अथ जयमाला-दोहा मंदिर गिर पश्चिम दिशा, षोड़श देश विशाल। रुपाचल पर जिन भवन, सुन तिनकी जयमाल॥२७॥ पद्धडी छन्द जै पुष्करार्ध वर द्वीपसार, जै मंदिर गिर पूरव निहार। जै गिरके पश्चिम दिश विदेह, तहां षोड़श देश भले सु नेह॥ जहां काल चतुर्थ सदा रहाय, तहां कर्मभूम विध रहो छाय। जै मुक्त पंथकी चलै चाल, भवि जीव लहैं चारित विशाल॥ जै तीर्थंकरको जन्म होय, सत इन्द्र महोत्सव क सोय। जहां पदवीधारक मनुष होय, निज पुन्य पाप फल लहैं सोय॥ जहां श्री मुनिराज करैं विहार, धर्मोपदेश भार्षे विचार। श्रावक ऐलक क्षुल्लक प्रवीन, सम्यकद्दष्टि जिनभक्ति लीन। षटखण्ड सहित सोहै सुदेश, इक जैनधर्म दूजो न लेश। तिस क्षेत्र बीच बैताड़ जान, द्युति श्वेतवरन षोडश महान॥ गिर शिखर विराजत सिद्धकूट, तिनमें जिनमंदिर अटूट। तहां श्रीजिनबिंब विराजमान, सब समोसरन रचना समान॥ सतआठ अधिक प्रतिमा प्रसिद्ध,यह वरनन जानो स्वयं सिद्ध। जै प्रातिहार्य मंगल सुदर्व, सुर विद्याधर पू0 जू सर्व // जै नृत्य करैं संगीत सार, बाजे बाजै अनहद अपार। जै छम छम छम धुंधरु बजंत, जै ठम ठम ठमक सुपग धरंत // जै फिर फिर फिरकी सुलेय, जै जिनगुण गावत ताल देय। यह अद्भुत समै बनो विशाल, जै बलबल जातसुदेखलाल॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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