________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [213 arerarrerakaraNarararerararararera मंदिरगिरकी पश्चिम दिशमें, षोड़श गिर रूपाचल जान। तापर श्री जिनभवन अनूपम, जजत जिनेश्वर श्री भगवान॥ ____ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी पद्मा // 1 // सुपा // 2 // महापद्मा // 3 // पद्मकावती // 4 // सुसंखा॥५॥ नलिना // 6 // कुमदा॥७॥ सरिता // 8 // वप्रा // 9 // सुवप्रा // 10 // महावप्रा // 11 // वप्रकावती॥१२॥ गंधा // 13 // सुगंधा // 14 // गंधला // 15 // गंधमालनी देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१६॥ जलं॥ केसर अर करपूर सु चंदन, परम सुगंधित लावत हैं। भव आताप सु दूर करनकों, श्री जिनचरण चढ़ावत हैं। मंदिर. // 3 // ॐ ह्रीं. ॥चंदनं / / सरस सु उज्वल चन्द्र किरन सम, अक्षत धोय सु लावत हैं। पुंज देत जिनराज सु आगै अक्षय पदको पावत हैं / मंदिर. // 4 // ॐ ह्रीं. // अक्षतं॥ केसर फूल सुवासित लेकर श्री जिन चरन चढावत हैं। भावभक्तिसों पूजा करकै, जन गुण मंगल गावत हैं। ___मंदिर. // 5 // ॐ ह्रीं. // पुष्पं // नाना विध पकवान मनोहर, ताजे तुरत संवारत हैं। क्षुधा रोग निरवारन कारन, जिनचरणन पर वारत हैं। मंदिर. // 6 // ॐ ह्रीं. // नैवेद्यं॥ मणिमई दीप अमोलिक लेकर, जिनमंदिरमें आवत हैं। करत आरती श्री जिन आगै, झांझर ताल बजावत हैं। मंदिर. // 7 // ॐ ह्रीं. // दीपं॥ दश विध धूप दसों दिश महकै, खेवत जिन आगे धरके। पूजत श्री जिनराज प्रभुको, जांय कर्म सब ही जरके // मंदिर. // 8 // ॐ ह्रीं. ॥धूपं॥