________________ 210] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान === = ======= = ==== == है वत्सकावती देशा, मंदिरते पूरव लेशा। रूपागिर शिखर विशाला, जिनमंदिर जजो त्रिकाला॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पूर्व विदेह सम्बन्धी वत्सकारः “ग संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१२॥ अर्घ // पद्धडी छन्द मंदिरगिर पूरव दिश सार, तहां रम्य देश सोहै निहार। वैताड़ शिखरजिनभवनदेख,पूजतभविअर्घसुअति विशेख। ___ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पूर्व विदेह सम्बन्धी रम्या देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 13 // अर्घ॥ वर देश सुरम्य बसै विशाल, गिर मंदिरके पूरव विशाल। जिनभवन कहो वैताड़ शीस, भवि अर्घ चढ़ावत नमतशीश॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पूर्व विदेह सम्बन्धी सुरम्या देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१४॥ अर्घ // गिर मंदिर दिश पूरव पवित्र, तहां रमणी देश वसै विचित्र। विजयारधपर जिनभवन सार, भवि अर्घ जजो वसुदर्व धार॥ ___ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पूर्व विदेह सम्बन्धी रमणी देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१५॥ अर्घ॥ हे मंगलावती देश नाम, मंदिर गिरके पूरव सु ठाम। जिनगेह शिखररुपा विशाल, जिनचरन अर्घ ले जजत लाल॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पूर्व विदेह सम्बन्धी मंगलावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१६॥ अर्घ // अथ जयमाला-दोहा मंदिर गिर पूरव दिशा रूपाचल सु विशाल। तिन पर षोडस जिन भवन, तिनकी यह जयमाल॥२७॥