________________ 196 ] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान crururururunununununununununununun अथ मंदिरमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी आठ वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 37 अथ स्थापना-कुसुमलता छन्द श्री मंदिर गिरिकी पूरव दिशमें, है वक्षार सु वसु गिर जान। कंचनवरण रतनमई कलशा, रतन जडित जिनभवन वखान॥ तहां श्री जिनवर बिंब बिराजै, सुर विद्याधर पूजै आन। हम तिनकी आह्वानन करकै, पूजत जिन धर आनंद मान॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी आठ वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं / अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं। अत्र मम सन्निहितो भवर वषट् सन्निधिकरणम्। स्थापनं। अथाष्टकं -चाल होलीकी वो जिन पूजोरे भाई, भला जिन पूजो रे भाई।। यह उत्तम नरभव पायके जिन पूजो रे भाई॥ टेक॥ सरस मनोहर उञ्जल जल ले, रतन कटोरी धारो। श्री जिनवरके सन्मुख होके, चरण कमल पखारो॥ वो जिन पूजो रे भाई॥१॥ मंदिर गिरकी पूरव दिशमें, वसु वक्षार बताए। तिनके शिखर जु श्री जिनमंदिर, पूजत मन हरषाए। वो जिन पूजो रे भाई॥२॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पूरवविदेह सम्बन्धी प्रश्चात्य // 1 // चित्रकूट // 2 // पद्मकूट // 3 // नलिन॥४॥ त्रिकूट // 5 // प्राच्य॥६॥ वैश्रवण // 7 // अंजन नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥८॥ जलं॥