________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [175 arrerananararararararsanararararam आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं स्थापनं। अथाष्टकं-चाल होलीकी आछी प्रीत लगाई॥ टेक॥ सुरपति पूजत फनपति पूजत, पूजत खेचराई। श्री जिनचरण चढ़ावत भविजन, जन्म जरा दुख जाई॥ आछी प्रीत लगाई। विजय अचलकी दक्षिण दिशमें, इक्ष्वाकार बताई। तापर जिन भवन अनूपम, जगजीवन सुखदाई॥ आछी प्रीत लगाई, पूजत श्री जिनराई॥ आछी प्रीत लगाई। ॐ ह्रीं धातुकी द्वीप मध्ये विजय अचलमेरुके दक्षिण दिश इक्ष्वाकार पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ जलं॥ मलयागिर चंदन केसर घस, दोऊ देत मिलाई। भव आताप सो दूर करनको, जजत जिनेश्वर पाई।आछी.॥ विजय अचलमेरु. // 3 // ॐ ह्रीं // चंदनं॥ मुक्ताफल सम उञ्जल अक्षत, सुन्दर धोय बनाई। पुंज देत जिनराज प्रभू ढिंग, अक्षयपदको पाई आछी॥ विजय अचलमेरु. // 4 // ॐ ह्रीं // अक्षतं॥ बेला कमल केतकी महकै, अरु गुलाब सुखदाई। काम रोगके दूर करनको, जजत जिनेश्वर जाई।आछी.।। विजय अचलमेरु. // 5 // ॐ ह्रीं / / पुष्यं॥