________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [173 AarashatarreranarsrirarararaNarerary ___पद्धडी छन्द जै द्वीप घातकी है विचित्र, पश्चिम गिर अचल महापवित्र। जैताकी दक्षिणदिश विशाल,तहां कुलगिरितीनकहैं रिशाल॥ गिर निषधनाम पहिलो सु जान, दूजो महाहिमवन है प्रधान। तीजो हिमवन जानो प्रवीन, अब उत्तर दिशके सुनो तीन॥ गिरनीलरुक्म सिखरन प्रसिद्ध,ये छहों कुलाचल स्वयं सिद्ध। गिर पीठ सरोवर सजल थान, द्रह बीच पद्म पंकत महान॥ अंबुज बिच कुलदेवी निवास, सब रत्नमई सुन्दर अवास। गिर सिखर कूट बहु है खन्न, तहां सिद्धकूट सोहैं सु धन्न / तापर जिनमंदिर जगमगाय, सब समोसरण रचना बनाय। वेदीपर सिंहासन सुहाय, तिस बीच कमल अति लहलहाय॥ तिहि ऊपर श्रीजिनराज भूप,सत आठ अधिक प्रतिमा अनूप। सब मंगल दर्व धरे बनाय, छवि प्रातिहार्य वरणी न जाय॥ सुर विद्याधरके ईश आय, जिनराज चरन पूजत बनाय। निरजर निरजरनी करत गान, खेचर खेचरनी हरष मान॥ द्रुम द्रुम द्रुम द्रुम बाजत मृदंग, इन्द्रानी इन्द्र नचै जुसंग। जिनराज सभी नैनन निहार, हरि लोचन द्वार किये हजार॥ झुकझुक झुकझुक जिन दर्श पाय, फिरफिरफिरफिरकीलैत जाय। टमटम टमटमक जो पग धरंत, छमछम छमछम धुंधरु बजं॥ सब सभा जीव जय जय करंत, जै नंद वृद्धि सुरपति भनन। जिन चरन कमल तलसीस नाय,भव लालजीत बलबल सुजाय॥