________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [171 Prarararerarersanarinarararararararar सुभ्रत शिखर कूट नव उन्नत, तिस बीच सिद्धकूट अभिराम। तहां जिनभवन निहार धार उर, अर्घ जजत तजके सबकाम॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके उत्तर दिश नील पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ // उत्तर दिशा अचलगिरि केरी, विषम रुक्मगिर पर्वत नाम। द्रह महापुंडरीक पंकज जुत, जलज बीच बुधदेवी धाम।। गिरके शिखरकूट वसु वरने, तिस बिच सिद्धकूट अभिराम। तहां जिनभवन निहार धार उर, अर्घ जजत तजके सबकाम॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके उत्तर दिश रुक्म पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥५॥ अर्घ // उत्तर अचलमेरुतें लखिये, हेम वरन सिखरन गिर नाम। कमल पुंज जुत पुण्डरीक द्रह, तहां लक्ष्मीदेवीको धाम॥ एकादसवरकूट सिखरगिरि, तिस बीच सिद्धकूट अभिराम। तहां जिन भवन निहारधार उर, अर्घ जजत तजके सबकाम॥ ____ॐ ह्रीं अचलमेरुके उत्तर दिश सिखरिन पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥६॥ अर्घ // भद्रशाल वन अचलमेरुके, सीता नदी दोनों तट जान। कुण्ड मनोहर पांच पांच हैं, तिह तट दस दस गिरि परमान॥ तिस कंचन गिरिपर जिन प्रतिमा, एक एक सोहै जिन थान। सबमिल एकशतक नितप्रति हम अरघ जजतउरमें धर ध्यान॥ ___ॐ ह्रीं अचलमेरुके भद्रशाल वन सम्बन्धी सीता नदीके दोनों तट पांच पांच कुण्ड तिस एक एक कुण्ड तट दस दस कंचनगिरि तिस कंचनगिरि पर एक एक जिनप्रतिमा अकीर्तम गंधकुटी सहित विराजमान तिन एकसौ प्रतिमाजीको॥७॥ अर्घ //