________________ 8] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ផលមធមមមមមមមមមមម दोहा-गुरुप्रसादतै पाइये, ज्ञान अधिक जगमाहि। कारजकारी जीवको, मुह समान कोउ नांहि // 52 // इति मंगलाचरण सम्पूर्ण। अथ मांडनेकी विधि प्रारंभ सुन्दरी छन्द दोहा-चार बीस चालीस (64) गज, इतनो क्षेत्र सु जान। तामैं रचो सु मांडनो, गोलाकार प्रमान // 53 // अब सु मांडनेकी विधि जानिये, सरस सुन्दरता परमानिये। बैठके भविजीव विचारकै, बुद्धिवंत हिये अब धारकै॥ दीप अढ़ाई सुन्दा सोहना, सुरसुनर सबके मन मोहना। तासु मध्य विराजै सार जू, पंच मेर परमसुखकार जू॥ एक मेर तनो वर्णन भनो, चार वन-चारों दिशमैं गनो। बन रहे जिन मंदिर सोहने, चार दिश सोलह मन मोहने। सरव शोभाकर सो लसत हैं,भव्यजन मुनिजन मन वसत हैं। देव जै जैकार तहां करें, बजत दुन्दुभि बाजे मन हरैं। दोहा-जिन मंदिर गिर पांचके, भए सु अस्सी जान। अब आगै वर्णन करूं, सो सुनिये उर आन // 58 // मद अवलिप्त कपोल छन्द गजदन्तनके वीस कूट द्रुमके दस जानो, जिनमंदिर गन तीस कुलाचलके परमानो। सौसत्तर बैताढ असी वक्षार बिराजै, इक्ष्वाकार सुचार सरस जिनमंदिर छाजै॥५९॥