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________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [155 vururururururunurGEYFynununununununun देव जीर सुखदायक अक्षत, सुन्दर मुक्ताफल उनहार। पुञ्ज देत भविजीव मनोहर, श्री जिनचरण हृदे अब धार॥ अचलमेरु. // 4 // ॐ ह्रीं. // अक्षतं॥ कमल केतकी जुही चमेली वेला, सरस गुलाब सु लाय। फैली सर्व सुगन्ध दशों दिश, देत श्री जिन चरण चढाय॥ अचलमेरु. // 5 // ॐ ह्रीं. // पुष्पं // बावर घेवर मोदक खाजे, ताजे तुरत सु लेत बनाय। घ्राण रसना सुख उपजत, चरु ले पूजत श्री जिनराय॥ अचलमेरु. // 6 // ॐ ह्रीं. // नैवेद्यं // जगमग जगमग होत दसों दिश, जोत रही मंदिरमें छाय! श्री जिन सन्मुख करत आरती, भवि मनवचतन प्रीत लगाय॥ अचलमेरु. // 7 // ॐ ह्री. // दीपं / / अगर कपूर सुगन्ध मनोहर, चन्दन कूट सु देत मिलाय। जिन सन्मुख खेवत धूपायन, कर्म जलावत मन हरवाय॥ ___ अचलमेरु. 18 // ॐ ह्रीं ॥धृपं / / नैननको सुन्दर सुखकारी मीठे सरस सुगन्धित लाय। षट ऋतुके ले फल जिन पूजो, शिवफल पावो चेतनराय।। __ अचलमेरु. // 9 // ॐ ह्रीं. // फलं // जल फल अर्घ चढाय गाय गुण, नाचत थेई थेई देदे ताल। धन्य भाग उनही जीवनके, जिनपद धोक देत भवि लाल॥ अचलमेरु. // 10 // ॐ ह्रीं. // अर्घ //
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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