________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [131 arrerarSararararaharaaaaaarahar ___ॐ ह्रीं अचलमेरुके अग्नि दिश सौमनस // 1 // नैऋत्य दिश विद्युत्प्रभ॥२॥ वायव्य दिश मालवान // 3 // ईशानदिश गंधमादन नाम गजदन्तपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ जलं॥ अगर चंदन केसर गारये, जिन चढ़ाय सु जन्म सु धारये। अचलमेरु तने गजदंत जू, तहां जिनेश्वर पूजत संत जू॥चंदनं। परम उज्जल अक्षत लीजिये, जिन सु आगै पुंज सु दीजिये। अचलमेरु तने गजदंत जू, तहां जिनेश्वर पूजत संत जू॥अक्षतं फूल सरस सुगन्धित लै घने, जिनसु पूजत काम विना हने। अचलमेरु तने गजदंत जू, तहां जिनेश्वर पूजत संत जू ।।पुष्पं // सरस विंजन मोदक लाइये, जिनसु पूजत मन हरषाइये। अचलमेरु तने गजदंत जू, तहां जिनेश्वर पूजत संत जू।नैवेद्यं॥ दीप जगमग जोति सुहावनी, जिनसु पूजत तन मन भावनी। अचलमेरु तने गजदंत जू, तहां जिनेश्वर पूजत संत जू।दीपं॥ अगर धूप सुगन्ध मंगाइके, जिनसु आगै खेवत जायके। अचलमेरु तने गजदंत जू, तहां जिनेश्वर पूजत संत जू॥धूपं // फल मनोहर सुन्दर सार जू, जिनसु पूजत पुण्य अपार जू। अचलमेरु तने गजदंत जू, तहां जिनेश्वर पूजत संत जूफिलं॥ जल फलादिक सुन्दर धोयकै, अर्घ देत सु लाल संयोजकै। अचलमेरु तने गजदंत जू, तहां जिनेश्वर पूजत संत जू।अर्घ॥ अथ प्रत्येकार्घ (सोरठा) अचल दिशा अगनेह, नागदंत सौमनस है। तापर श्री जिन गेह, पूजों वसु विध दर्वसों॥११॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके अग्नि दिश सौमनस नाम गजदन्तपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ॥