________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [129 orarersarakarararasaaraarakSahara अथ जयमाला - दोहा द्वीप धातुकी खंडमें, पश्चिम दिश सु विश्..ल। अचलमेरु तहां सोहनो, सुनो भविक जयमाल॥२७॥ पद्धडी छन्द जै केवलज्ञान विराजमान, तिन मुखरौं जिन ध्वनि खिरी जान। सो गणधर देव दई बताय, भवि जीव सुनत आनंद पाय॥ जै दीप धातुकी है महान, ताकी पश्चिम दिशमें वखान। है अचलमेरु महिमा अपार, जै कंचन वर्ण हिये सुधार // जै सहस असी अरु चार जान, जोजन ऊंचै भाषे पुरान। जै चारो कटनी हैं रिशाल, तहां चारों वन शोभै विशाल॥ जै भद्रशाल पहिलो अनूप मनमोहन नन्दनवन स्वरूप। सौमनस सु वन तीजो बताय, चौथी पांडुक छवि रही छाय॥ जै चारों वन दैदीप्यमान, फल फूल पत्र सुन्दर सु जान। जै पांडुक वनमें सब सुरेश, जै न्हवन करत अद्भुत जिनेश॥ जै गावत जिन गुण हरष धार सो वरणन करत लगै अवार। जै चारों दिशमें चार२, षोड़श जिनभवन बने निहार / / तहांश्रीजिनबिंबविराजमान,सतआठअधिकसुखकेनिधान। पद्मासन छवि वरणी न जाय, तन उचित पांचसै धनुष काय॥ सुर विद्याधर पूजै त्रिकाल, गुण गान करें अद्भुत विशाल। जै जै जै शब्द करें सु जान, खेचर खेचरनी नचैं आन॥ जिनराज दरस नैनन निहार, यह अरज करत प्रभु तार तार। तुम चरणकमलको सीसनाय भवि लालसदा बलर सुजाय॥