________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [125 = = = = = = = = = = मलयागिरि बावन चंदन पावन, निर्मल भावन घस लीवो। जिनचरण चढावो दाह नशावो, शिपद पावो भव जीवो॥ गिर अचल.॥३॥ ॐ ह्रीं.॥चंदनं॥ अक्षत ले ताजे अति छवि छाजे, कोमल साजे धोय धरो। अक्षयपद पावो मन हरषावो, बलबल जावो दोष हरो॥ गिर अचल.॥४॥ ॐ ह्रीं. // अक्षतं॥ बहु फूल सुवासी अमल विकाशी, आनंद राशी लाय धरो। सुरतरुके लावो चरण चढ़ावो, जिनगुण गावो काम हरो॥ गिर अचल.॥५॥ॐ ह्री.॥ पुष्पं॥ पकवान सुनीको तुरत सुधीको, सब विध ठीको मिष्ट महा। भर कंचन थारी नेवज सारी, क्षुधा निवारी हर्ष लहा॥ गिर अचल.॥६॥ॐ ह्रीं. // नैवेद्यं // दीपककी जोतं तम क्षय होतं, जोत उद्योतं रत्नमई। , मोहादिक नाशैं स्वपर प्रकाशैं हम घट माशैं ज्ञानमई॥ गिर अचल.॥७॥ ॐ ह्रीं. // दीपं॥ वरधूप दशांगी परमल चांगी, अगन सुरांगी धर खेवो। वसु कर्म जलावो मन हर्षावो, पुन्य बढावो जिन सेवो॥ गिर अचल.॥८॥ ॐ ह्रीं.॥धूपं॥ फल मधुर सुचोखे सुर तरुपोखे, अमल अदोखे रितु रितुके। जिनचरण चढावो मंगल गावो, शिवफल पावो निज हितके॥ गिर अचल.॥९॥ ॐ ह्रीं // फलं॥ जल फल वसु लावो अर्घ बनावो, पूज रचावो हितकारी। भविजन सब लावो कर चित्त चावो,आन चढ़ावो भर थारी॥ गिर अचल.॥१०॥ ॐ ह्रीं. ॥अर्घ॥