________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [119 = = = = = == == दशविध धूप सुगंधित लेकर, पूजन भविजन भाई। ये कर्मादिक दहन हुताशन, जिन चरनन लौ लाई॥ विजयमेरु.॥८॥ ॐ ह्रीं. // धूपं // लौंग लायची पिस्ता किसमिस, अरु बादाम मंगावो। पूजत भविजन श्रीजिनवर पद मुक्तश्री फल पावो॥ विजयमेरु.॥९॥ ॐ ह्रीं. // फलं॥ जल फल अर्घ बनाय गाय गुण, श्री जिनचरण चढ़ावो। भावभक्तिसौ पूजो भविजन, वसुविध कर्म नशावो॥ विजयमेरु.॥१०॥ ॐ ह्री. // अर्घ। अथ प्रत्येकाघ (मदअवलिप्तकपोल छन्द) विजयमेरके दक्षिण सोहै, तप्त हेमद्युति निषध सु नाम। द्रहतिगिन्छ कमल पंकति जुत, जलज बीच धृत देवी धाम॥ गिरिके शिखर कूट नव वरने तिस बीच सिद्धकूट अभिराम। तहां जिनभवन निहार धार उर, अर्घ चढ़ाय करत परणाम॥ ॐ ह्रीं विजयमेरुके दक्षिण दिश निषेध पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ // विजयमेरु दक्षिण दिश सोहै, विसद महाहिमवन गिर नाम। द्रह महा पद्म कमलकी पंकज, नीरज बीच ही देवी नाम॥ गिरके शिखरकूट वसु उन्नत, तिहबिच सिद्धकूट अभिराम। तहां जिनभवन निहार धार उर, अर्घ चढाय करत परणाम॥ ___ॐ ह्रीं विजयमेरुके दक्षिण दिश महाहिमवन पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ //