________________ 110] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ==== === ===== ___अथाष्टकं-चाल प्रभु पूजो रे भाई, भला प्रभु पूजो रे भाई। तुम श्रावक कुलको पाय कै, प्रभु पूजो रे भाई॥ टेक // पद्मद्रहको नीर सु लेकर, कंचन झारी भरिये। श्री जिनचरण चढ़ावत भविजन, तृषा रोग तब हरिये॥प्रभु. विजय मेरुकी दक्षिण दिशमें, भरत क्षेत्र अति सौहै। तहां पडो वैताड़ मनोहर, जिन मंदिर मन मोहै।प्रभु.॥२॥ ॐ ह्रीं विजयमेरुके दक्षिण दिश भरतक्षेत्र सम्बन्धी रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ जलं॥ मलयागिर घस सार सु चन्दन, केसर रंग सु गारो। श्री जिनचरण चढावो भविजन, भव आताप निवारो।।प्रभु.॥ विजयमेरु.॥३॥ ॐ ह्रीं // चंदनं॥ मुक्ताफल सम उज्जल अक्षत, पुज्ज मनोहर दीजै। श्री जिनचरण चढावत भविजन, तुरत अखै पद लीजैं।प्रभु.॥ विजयमेरु.॥४॥ ॐ ह्रीं. // अक्षतं॥ कमल केतकी जुही चमेली, श्री गुलाब ले नीको। कामबाणके नाशन कारण, पूजो श्री जिनजीको॥प्रभु.॥ विजयमेरु.॥५॥ ॐ ह्रीं. // पुष्पं // फेनी घेवर मोदक खाजे, ताजे तुरत बनावो। क्षुधा रोगके नाशन कारण, श्री जिनचरण चढावो।प्रभु.॥ विजयमेरु.॥६॥ ॐ ह्रीं. // नैवेद्यं॥ मणिमई दीप अमोलिक लेकर, कनक रकेबी धारो। मोह तिमिरके नाशन कारण, जिन वरणन पर वारो।।प्रभु.॥ विजयमेरु.॥७॥ॐ ह्रीं. // दीपं॥