________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [93 ==================== मलयागिर चन्दन ले आवो, पूजन जिनवर पुन्य कमावो। भव आताप महादुखदाई, ताको नाश होय सुन भाई॥ विजय. // 5 // ॐ ह्री. चंदनं॥ मुक्ताफल सम अक्षत लीजें, श्रीजिन सन्मुख पुंज सु दीजै। यातें अक्षत पद तुम, कर्मादिक सब कीच बहावो॥ विजय. // 7 // ॐ ह्रीं. अक्षतं॥ सुरतरुके बहु फूल सु लावो, श्री जिनचरणन भेंट चढ़ावो। यातें कामबाण मिट जावै, जिनपद पूज परम सुख पावै॥ विजय. // 9 // ॐ ह्रीं. पुष्पं // फेनी गोझा मोदक खाजे, नैननको प्यारे ले ताजे। क्षुधा रोगको नाश सु कीजे, अजर अमर पदवी तब लीजे॥ विजय. // 11 // ॐ ह्रीं. नैवेद्यं॥ दीप अमोलिक कर धरवा लो जगमग जगमग होत दिवालो। मोहतिमिर कहुँ दीखत नाही, पूजत जिनचरणन जग माही॥ विजय. // 13 // ॐ ह्री. दीपं॥ धूप सुगन्ध दशों दिश छाई, जिनचरणन भवि खेवत भाई। कर्म महारिपु को सुजलावो, पूजत जिनवर शिवसुख पावो॥ विजय. // 15 // ॐ ह्रीं. धूपं॥ लौंग छुहारे पिस्ता लाय, श्रीफल अरू बादाम मंगाय। ले जिनवरके सन्मुख हुजे, पावत शिवफल प्रभुपद पूजे॥ विजय. // 17 // ॐ ह्रीं. फलं॥ जल फल अर्घ चढाय सु गावै,थेई थेई थेई सुर ताल बजावै। यहै कौतुक अद्भुत सुविशेखो,पूजत जिनवर लाल सु देखो। विजय. // 19 // ॐ ह्रीं. // अर्घ॥