________________ मिथ्यात्व गुणस्थान 75 रागी-द्वेषी देवी-देवताओं को अपना हितकारक या अहितकारक मान लेना अपनी ही अज्ञानता का प्रदर्शन है। तर्कशील व्यक्ति गृहीत मिथ्यात्व को सहज ही छोड़ सकता है। 3. क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी और वैनयिक के भेद से भी मिथ्यात्व के चार भेद हैं, इनके ही उत्तर भेद 363 हैं। मिथ्यात्व का शब्दार्थ - मिथ्यात्व शब्द का अर्थ है विपरीतता, असत्यपना। श्रद्धा, ज्ञान व चारित्र गुण के विपरीत परिणमन को ही यहाँ मिथ्यात्व कहा है। विपरीत शब्द का अर्थ उल्टा अर्थात् वस्तुस्वरूप से विरुद्ध है। प्रत्येक आत्मा में अनंत गुण हैं, उनमें से मोक्षमार्ग में श्रद्धा, ज्ञान व चारित्र ये तीन गुण ही मुख्य माने गये हैं; क्योंकि इनमें सम्यक्पना होने से मोक्षमार्ग प्रगट होता है और इनके ही विपरीत परिणमन से अज्ञानी को अनादि काल से संसारमार्ग वर्त रहा है। ___ जहाँ अकेले ही श्रद्धागुण का सम्यक् परिणमन हुआ, वहाँ अन्य ज्ञान, चारित्र इन दोनों गुणों का अथवा अनंत गुणों का भी नियम से सम्यक् परिणमन हो जाता है। इसी भाव को मोक्षमार्गप्रकाशक ग्रंथ के सातवें अध्याय के मंगलाचरण में स्पष्ट किया है, जो इसप्रकार है - इस भवतरु का मूल इक, जानहु मिथ्याभाव / ताको करि निर्मल अब, करिए मोक्ष उपाव / / 1 / / इस दोहे में प्रयुक्त मिथ्याभाव शब्द मिथ्यात्व के ही अर्थ में आया है; जो श्रद्धा, ज्ञान, चारित्र - इन तीनों गुणों की विपरीतता को प्रकाशित करता है। इसीप्रकार सम्यक्त्व शब्द भी श्रद्धा, ज्ञान व चारित्र तीनों गुणों के सम्यक् परिणमन के अर्थ में ही प्रयुक्त हुआ है। चारित्र अपेक्षा विचार___ इस प्रथम मिथ्यात्वगुणस्थान में चारित्र गुणका परिणमन नियम से विपरीत ही होता है; अत: यहाँ मिथ्याचारित्र ही है। श्रद्धा गुण के विपरीत परिणमन के कारण से ही चारित्र गुण का परिणमन विपरीत होता है। इसका अर्थ श्रद्धा गुण का विपरीत परिणमन निमित्त और चारित्र गुण का विपरीत परिणमन नैमित्तिक / इस अपेक्षा से यह कथन सत्य होने पर भी मात्र मिथ्या श्रद्धा ने ही चारित्र को मिथ्या नहीं बनाया है।