SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 281
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 280 गुणस्थान विवेचन पाँच कारणों से सम्यक्त्व का विनाश होता है (दोहा) ग्यान-गरव मति मंदता, निठुर वचन उदगार / रुद्रभाव आलस दसा, नास पंच परकार / / 37 / / अर्थ :- ज्ञान का अभिमान, बुद्धि की हीनता, निर्दय वचनों का भाषण, क्रोध परिणाम और प्रमाद ये पाँच सम्यक्त्व के घातक हैं। श्रावक के इक्कीस गुण (सवैया इकतीसा) लज्जावंत दयावंत प्रसंत प्रतीतवंत, परदोष को ढकैया पर-उपगारी है। सौमदृष्टि गुनग्राही गरिष्ट सबकौं इष्ट, शिष्टपक्षी मिष्टवादी दीरघ विचारी है।। विशेषग्य रसग्य कृतग्य तग्य धरमग्य, ___ नदीन न अभिमानी मध्य विवहारी है। सहज विनीत पापक्रिया सौं अतीत ऐसौ, श्रावक पुनीत इकवीस गुनधारी है / / 54 / / अर्थ :- लज्जा, दया, मंदकषाय, श्रद्धा, दूसरों के दोष ढाँकना, परोपकार, सौम्यदृष्टि, गुणग्राहकता, सहनशीलता, सर्वप्रियता, सत्य पक्ष, मिष्टवचन, अग्रसोची, विशेषज्ञानी, शास्त्रज्ञान की मर्मज्ञता, कृतज्ञता, तत्त्वज्ञानी, धर्मात्मा, न दीन न अभिमानीमध्य व्यवहारी, स्वाभाविक विनयवान, पापाचरण से रहित - ऐसे इक्कीस पवित्र गुण श्रावकों को ग्रहण करना चाहिये। उपशमश्रेणी की अपेक्षा गुणस्थानों का काल (दोहा) षट सात आठ नवै, दस एकादस थान / अंतरमुहूरत एक वा, एक समै थिति जान / / 103 / / अर्थ :- उपशम श्रेणी की अपेक्षा छठवें, सातवें, आठवें, नववें, दसवें और ग्यारहवें गुणस्थान का उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त वा जघन्य काल एक समय है।। क्षपक श्रेणी में गुणस्थानों का काल (दोहा) छपक श्रेनि आठ नवै, दस अर वलि बार / थिति उत्कृष्ट जघन्य भी, अंतरमुहूर्त काल / / 104 / / अर्थ :-क्षपकश्रेणी में आठवें, नववें, दसवें और बारहवें गुणस्थान की उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त तथा जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त है। - समयसार नाटक (गुणस्थानाधिकार)
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy