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________________ 278 गुणस्थान विवेचन गुणस्थानों से गमनागमन मिथ्या मारग चारि, तीनि चउ पाँच सात भनि / दुतिय एक मिथ्यात, तृतीय चौथा पहला गनि / / 1 / / अव्रत मारग पाँच, तीनि दो एक सात पन / पंचम पंच सुसात, चार तिय दोय एक भन / / 2 / / छटे षट् इक पंचम अधिक, सात आठ नव दस सुनो। तिय अध उरध चौथे मरन, ग्यारह बार बिन दो मुनो॥३॥ - पण्डित द्यानतरायजी : चरचा शतक, छन्द-४४ इस छन्द का हिन्दी में भावार्थ इसप्रकार है - 1. पहले गुणस्थान से ऊपर गमन के चार मार्ग हैं - तीसरे, चौथे, पाँचवें और सातवें में। 2. सासादन गुणस्थान से नीचे की ओर गमन का एक ही मार्ग है; पहले गुणस्थान तो। 3. तीसरे मिश्र गुणस्थान से गमन के लिए कुल दो मार्ग हैं; ऊपर की ओर चौथे में तथा नीचे की ओर पहले में। 4. चौथे गुणस्थान से गमन के पाँच मार्ग हैं - ऊपर की ओर पाँचवें और सातवें में और नीचे की ओर तीसरे, दूसरे और पहले में। 5. पाँचवें गुणस्थान से भी पाँच मार्ग हैं - ऊपर की ओर सातवें में तथा नीचे की ओर चौथे, तीसरे, दूसरे और पहले में। 6. छठवें गुणस्थान से छह मार्ग हैं - ऊपर की ओर सातवें में तथा नीचे की ओर पाँचवें, चौथे, तीसरे, दूसरे और पहले गुणस्थान में। 7. उपशम श्रेणी के सन्मुख सातवें से तीन मार्ग हैं - ऊपर की ओर आठवें में, गिरते समय नीचे की ओर छठवें में और मरण हो जाय तो विग्रह गति में चौथे में। 8. उपशम श्रेणीवाले आठवें से तीन मार्ग हैं - ऊपर की ओर नौवें में तथा नीचे की ओर सातवें में और मरण अपेक्षा चौथे में। 9. उपशम श्रेणीवाले नौवें से तीन मार्ग हैं - ऊपर की ओर दसवें में तथा नीचे की ओर आठवें में और मरण अपेक्षा चौथे में। 10. उपशम श्रेणीवाले दसवें से तीन मार्ग हैं - ऊपर की ओर ग्यारहवें में तथा नीचे की ओर नौवें में और मरण अपेक्षा चौथे में। 11. ग्यारहवें से दो ही मार्ग हैं - नीचे की ओर दसवें में और मरण अपेक्षा चौथे में।
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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