________________ 274 गुणस्थान विवेचन 5. अनिवृत्तिकरण के काल में संख्यात भाग शेष रहने पर स्त्यानगृद्धि, निद्रा-निद्रा, प्रचला-प्रचला, नरकगति, तिर्यंचगति, एकेन्द्रिय जाति, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जाति, नरकगति-प्रायोग्यानुपूर्वी, तिर्यंचगति प्रायोग्यानुपूर्वी, आतप, उद्योत, स्थावर, सूक्ष्म और साधारण इन सोलह प्रकृतियों का क्षय करता है। 6. पश्चात् अन्तर्मुहूर्त व्यतीत कर प्रत्याख्यानावरण और अप्रत्याख्यानावरण सम्बन्धी क्रोध-मान-माया और लोभ इन आठ प्रकृतियों का एक साथ क्षय करता है। (यह सत्कर्मप्राभृत का उपदेश है, किन्तु कषायप्राभृत का उपदेश तो इस प्रकार है कि पहले आठ कषायों का क्षय हो जाने के पश्चात् एक अन्तर्मुहूर्त में पूर्वोक्त 16 कर्मप्रकृतियाँ क्षय को प्राप्त होती हैं। ये दोनों ही उपदेश हमारे लिए तो सत्य हैं, क्योंकि वर्तमान में केवली-श्रुतकेवली का अभाव होने से यह निर्णय नहीं हो सकता कि कौनसा उपदेश घटित हो सकता है? तत्पश्चात् आठ कषाय और 16 प्रकृतियों के नाश होने पर एक अन्तर्मुहूर्त जाकर चार संज्वलन और नौ नोकषायों का अन्तरकरण करता है। अन्तरकरण करने के पहले चार संज्वलन और नौ नोकषाय सम्बन्धी तीन वेदों में से जिन दो प्रकृतियों का उदय रहता है उनकी प्रथम स्थिति अन्तर्मुहूर्त मात्र स्थापित करता है और अनुदयरूप 11 प्रकृतियों की प्रथम स्थिति एक समय कम आवली मात्र स्थापित करता है।) 7. तत्पश्चात् अन्तरकरण करके एक अन्तर्मुहूर्त व्यतीत होने पर नपुंसकवेद का क्षय करता है। 8. तदनन्तर एक अन्तर्मुहूर्त व्यतीत हो जाने पर स्त्रीवेद का क्षय करता है। 9. पुनः एक अन्तर्मुहूर्त जाकर सवेदभाग के द्विचरम समय में पुरुषवेद के पुरातन सत्तारूप कर्मों के साथ 6 नोकषाय का युगपत् क्षय करता है। 10. तदनन्तर एक समय कम दो आवली मात्र काल के व्यतीत होने पर पुरुषवेद का क्षय करता है। 11. तत्पश्चात् एकअन्तर्मुहूर्त ऊपर जाकर क्रोध संज्वलन का क्षय करता है। 12. पश्चात् एक अन्तर्मुहूर्त व्यतीत होने पर मान संज्वलन का क्षय करता है।