________________ 267 गुणस्थानों में विशेष 16. चौदहवें गुणस्थान में जीवों की संख्या 598 है। 17. छठवें गुणस्थान से चौदहवें गुणस्थान तक जीवों की संख्या का जोड़ है - 5,93,98,206 + 2,96,99,103 + 1,196 + 2,392 + 8,98,502 + 598 = 8,99,99,997. ये तीन कम नौ करोड़ मुनिराज भावलिंगी ही होते हैं। 18. द्रव्यलिंगी मुनिराज पहले, दूसरे, तीसरे, चौथे, पाँचवें गुणस्थान में भी होते हैं। 2. गुणस्थानों में बंध संबंधी सामान्य नियम - 1. मिथ्यात्व की प्रधानता से मिथ्यात्व गुणस्थान में 16 प्रकृतियों का बंध होता है। 2. अनन्तानुबंधी कषाय के उदय जनित अविरति से 25 प्रकृतियों का बंध होता है। सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति के उदय की अपेक्षा मिश्र गुणस्थान में बंध की व्युच्छित्ति का अभाव होने से तसंबंधी नयी प्रकृति का बंध नहीं होता और किसी भी आयुकर्म का बंध भी नहीं होता। 3. अप्रत्याख्यानावरण कषायोदयजनित अविरति से 10 प्रकृतियों का बंध होता है। 4. प्रत्याख्यानावरण कषाय उदय जनित विरताविरत से 4 प्रकृतियों का बंध होता है। 5. संज्वलन के तीव्र उदय जनित प्रमाद से 6 प्रकृतियों का बंध होता है / .. 6. संज्वलन और नोकषाय के मंद उदय से 59 प्रकृतियों का बंध होता है। 7. योग से एक साता वेदनीय का बंध होता है। (मोह का सर्वथा उपशम होनेपर या सर्वथा क्षय होने पर) 8. तीर्थंकर प्रकृति का बंध सम्यग्दृष्टि के चतुर्थ गुणस्थान से आठवें गुणस्थान के छठे भाग पर्यंत ही होता है। 9. आहारक शरीर और आहारक अंगोपांग का बंध सातवें से आठवें गुणस्थान के छठे भाग पर्यंत ही होता है। 10. तीसरे गुणस्थान में किसी भी आयु का बंध नहीं होता है।