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________________ जीव ही बलवान है, कर्म नहीं हो गये हैं। इससे स्वतः सिद्ध हो गया कि जीव ही बलवान है ! मानो सिद्ध भगवान सिद्धालय में बैठकर हमें देखकर पुकार-पुकारकर समझा रहे हैं कि कर्मरहित ऐसे हम अनंत सिद्धों को जानकर भी जीव ही बलवान है, कर्म नहीं यह छोटी-सी बात तुम्हारी समझ में क्यों नहीं आ रही है ? 19. श्री चंद्रप्रभ भगवान की पूजन के छंद में कहा है - कर्म बिचारे कौन, भूल मेरी अधिकाई। अग्नि सहै घनघात, लोह की संगति पाई।। देव-शास्त्र-गुरु पूजन का निम्न छंद भी हमें स्पष्ट समझा रहा है - जड़कर्म घुमाता है मुझको, यह मिथ्या भ्रांति रही मेरी। मैं राग-द्वेष किया करता, जब परिणति होती जड़ केरी / / प्रश्न : शास्त्रों में सर्वत्र सुखी अथवा मुक्त होने के लिए जीवों को ही क्यों समझाया है ? कर्मों को क्यों नहीं समझाया ? उत्तर : 1. समझदार अर्थात् ज्ञानवान को समझाया जाता है; अतः शास्त्र में कथन आता है - कर्म को नष्ट करो ऐसा जीव को ही समझाया गया है; क्योंकि जीव ज्ञानवान है। कर्म पुद्गल की पर्याय है, पुद्गल जड़ अचेतन है। अतः उसे “तुम जीव को छोड़ो, उसे मुक्त होने दो, उसे क्यों हैरान कर रहे हो ?" ऐसा नहीं समझाया है। 2. जीव अनादि-अनंत है, अत: जीव बड़ा है। कर्म सादि-सान्त है; इसलिए उम्र की अपेक्षा से भी कर्म ही छोटा है। कर्म अधिक से अधिक सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर स्थितिवाला हो सकता है। जैसे - लौकिक जीवन में बड़े और छोटे भाइयों में अथवा विद्यार्थियों में झगड़ा हो जाता है तो बड़े को समझाते हैं। संसार में जीव बड़ा है। अतः जीव को ही समझाया है। 20. छठवें गुणस्थान में भावलिंगी मुनिराज को असातावेदनीय, अरति, शोक, भय आदि पापकर्मों का उदय है तथा प्रतिकूल निमित्त भी हैं; परन्तु ये कर्म मुनिराज को दुःखी या खेदखिन्न नहीं करते; क्योंकि मुनिराज ज्ञाता-दृष्टा रहते हैं तो कर्म बलवान कैसे ? अतः अपनी मान्यता शास्त्रानुकूल बनाने में ही हमारा हित है।
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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