________________ 246 गुणस्थान विवेचन जिसमें इन्द्रिय, आलोक और मन की अपेक्षा नहीं होती है, उसे केवल अथवा असहाय कहते हैं। वह केवल अथवा असहाय ज्ञान जिनके होता है, उन्हें केवली कहते हैं। मन, वचन और काय की प्रवृत्ति को योग कहते हैं। जो योग के साथ रहते हैं, उन्हें सयोग कहते हैं। इसतरह जो सयोग होते हुए केवली हैं उन्हें सयोगकेवली कहते हैं। ___ इस सूत्र में जो सयोग पद का ग्रहण किया है वह अन्तदीपक होने से नीचे के संपूर्ण गुणस्थानों के सयोगपने का प्रतिपादक है। चारों घातिया कर्मों के क्षय कर देने से, वेदनीय कर्म के नि:शक्त कर देने से अथवा आठों ही कर्मों के अवयवरूप साठ उत्तर-कर्म-प्रकृतियों के नष्ट कर देने से इस गुणस्थान में क्षायिकभाव होता है। विशेषार्थ- यद्यपि अरहंत परमेष्ठी के चारों घातिया कर्मों की सैंतालीस, नाम कर्म की तेरह और आयु कर्म की तीन, इसतरह त्रेसठ प्रकृतियों का अभाव होता है; फिर भी यहाँ साठ कर्मप्रकृतियों का अभाव बतलाया है। इसका ऐसा अभिप्राय समझना चाहिये कि आयु की तीन प्रकृतियों के नाश के लिये प्रयत्न नहीं करना पड़ता है। ___ मुक्ति को प्राप्त होनेवाले जीव के एक मनुष्यायु को छोड़कर अन्य आयु की सत्ता नहीं पाई जाती है; इसलिये यहाँ पर आयु कर्म की तीन प्रकृतियों की अविवक्षा करके साठ प्रकृतियों का नाश बतलाया गया है।