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________________ 206 गुणस्थान विवेचन धुले हुए कौसुंभी वस्त्र की सूक्ष्म लालिमा के समान सूक्ष्म लोभ का वेदन करनेवाले उपशमक अथवा क्षपक जीवों के यथाख्यात चारित्र से किंचित् न्यून वीतराग परिणामों को सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान कहते हैं। कौसुंभी वस्त्र लाल रंग का होता है। उस वस्त्र को पानी से धो लेने पर उसकी लालिमा कम हो जाती है। उस धुले हुए कौसुंभी वस्त्र की लालिमा के समान सूक्ष्मलोभ परिणाम का वेदन मुनिराज करते हैं अर्थात् सूक्ष्मलोभ कषाय कर्म के उदय से महामुनिराज को अबुद्धिपूर्वक उत्तरोत्तर हीन-हीन सूक्ष्मलोभ परिणाम होता रहता है। वैसे तो सातवें अप्रमत्त गुणस्थान से ही मुनिराज निज सहजानंदमय शुद्धात्मा का वेदन/अनुभवन करते हैं; तथापि पूर्ण वीतरागतारूप यथाख्यात चारित्र की कमी का दिग्दर्शन कराने के उद्देश्य से सूक्ष्मलोभ का वेदन करने वाले ऐसा कथन अशुद्धनिश्चयनय से आचार्यश्री नेमिचंद्र ने इस गाथा में किया है। इसे ही अध्यात्म की अपेक्षा व्यवहारनय का कथन कहते हैं। अप्रत्याख्यानावरण क्रोधादि चार कषाय, प्रत्याख्यानावरण क्रोधादि चार कषाय और संज्वलन क्रोध, मान और माया ये कुल मिलाकर 11 कषाय और हास्यादि 9 नोकषायों के अनुदयपूर्वक व्यक्त होनेवाला वीतराग परिणाम दसवें गुणस्थान का यथार्थ स्वरूप नहीं है। वह वीतरागता सूक्ष्मलोभ के साथ हो तो दसवाँ गुणस्थान होता है; क्योंकि दसवें गुणस्थान का नाम ही सूक्ष्मसांपराय है। सांपराय शब्द का अर्थ कषाय होता है। 94. प्रश्न : यदि सूक्ष्म लोभ को गौण किया जाय तो क्या कुछ दोष है ? __उत्तर : यदि सूक्ष्म लोभ को गौण किया जाय तो दसवें गुणस्थान में ही पूर्ण वीतरागता का स्वीकार करना अनिवार्य हो जायगा और फिर चौदह गुणस्थानों की जगह गुणस्थान तेरह ही रह जायेंगे, जो आगम को मान्य नहीं है। करणानुयोग में केवली भगवान की आज्ञा की प्रधानता रहती है, इसका भी ध्यान रखना आवश्यक है। दसवें गुणस्थान का पूर्ण नाम “सूक्ष्मसापराय प्रविष्टशुद्धिसंयत है।"
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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