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________________ 200 गुणस्थान विवेचन उपशमक और क्षपक दोनों प्रकार के जीव होते हैं। उन सब संयतों का मिलकर एक अनिवृत्तिकरण गुणस्थान होता है। ___27. शंका - जितने परिणाम होते हैं, उतने ही गुणस्थान क्यों नहीं होते हैं? ___समाधान - नहीं; क्योंकि जितने परिणाम होते हैं, उतने ही गुणस्थान यदि माने जाय तो व्यवहार ही नहीं चल सकता है। इसलिये द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा नियत-संख्यावाले ही गुणस्थान कहे गये हैं। 28. शंका - इस सूत्र में संयत पद का ग्रहण करना व्यर्थ है ? समाधान - यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि संयम पाँचों ही गुणस्थानों में संभव है, इसमें कोई व्यभिचार दोष नहीं आता है। इसप्रकार जानने का दूसरा कोई उपाय नहीं होने से यहाँ संयम पद का ग्रहण किया है। ____ 29. शंका- ‘पमत्तसंजदा' इस सूत्र में ग्रहण किये गये संयत पद की यहाँ अनिवृत्ति होती है और उससे ही उक्त अर्थ का ज्ञान भी हो जाता है, इसलिये फिर से इस पद का ग्रहण करना व्यर्थ है ? समाधान - यदि ऐसा है, तो संयत पद का यहाँ पुनः प्रयोग मन्दबुद्धि जनों के अनुग्रह के लिये समझना चाहिये। 30. शंका - यदि ऐसा है, तो उपशान्तकषाय आदि गुणस्थानों में भी संयत पद का ग्रहण करना चाहिये ? ___ समाधान - नहीं; क्योंकि दशवें गुणस्थान तक सभी जीव कषायसहित होने के कारण, कषाय की अपेक्षा संयतों की असंयतों के साथ सदृशता पाई जाती है, इसलिये नीचे के दशवें गुणस्थान तक मन्दबुद्धिजनों को संशय उत्पन्न होने की संभावना है; अतः संशय के निवारण के लिये संयत विशेषण देना आवश्यक है; किन्तु ऊपर के उपशान्तकषाय आदि गुणस्थानों में मन्दबुद्धिजनों को भी शंका उत्पन्न नहीं हो सकती है; क्योंकि वहाँ पर संयत क्षीणकषाय अथवा उपशान्तकषाय ही होते हैं, इसलिये भावों की अपेक्षा भी संयतों की असंयतों से सदृशता नहीं पाई जाती है। अतएव यहाँ पर संयत विशेषण देना आवश्यक नहीं है।
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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