________________ अनिवृत्तिकरण गुणस्थान 197 __ अतः नौवें गुणस्थानवर्ती वीतराग परिणाम ने श्रेणी के अन्य तीनों गुणस्थानों की अपेक्षा विशेष महत्वपूर्ण काम किया है; यह बात स्वयं स्पष्ट होती है। इस दृष्टि से अनिवृत्तिकरण गुणस्थान असाधारण है। काल अपेक्षा विचार - __ जघन्यकाल - 1. कोई महामुनीश्वर उपशमक अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में मरण की अपेक्षा से मात्र एक ही समय रहते हैं। जैसे कोई महामुनिराज सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान से नीचे उतरते समय नीचे अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में मात्र एक समय व्यतीत करते ही उनके मनुष्यायु का क्षय हो जाय तो मरण की अपेक्षा अनिवृत्तिकरण गुणस्थान का जघन्य काल एक समय घटित होता है। 2. अथवा उपशमक अपूर्वकरण गुणस्थान से ऊपर चढ़ते समय कोई मुनिराज अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में आरूढ़ हुए और मात्र वहाँ एक समय रहें और तत्काल मनुष्यायु का क्षय हो जाय तो भी नौवें गुणस्थान का जघन्य काल एक समय हो सकता है। उत्कृष्ट काल - यथायोग्य मात्र अंतर्मुहूर्त / यदि उपशमक अनिवृत्तिकरण गुणस्थानवर्ती इस नौवें गुणस्थान में अधिक से अधिक काल रहेंगे तो यथायोग्य अंतर्मुहूर्त काल पर्यंत ही रहेंगे। क्षपक अनिवृत्तिकरण मुनिराज के जघन्य या उत्कृष्ट काल का प्रसंग ही नहीं आता; क्योंकि उनका तो न पतन होता है न मरण। इसलिए जघन्य अथवा उत्कृष्ट काल नहीं है। जिसे जघन्य काल होता है, उसे ही उत्कृष्ट काल का व्यवहार होता है। मध्यमकाल - उपशम अनिवृत्तिकरण गुणस्थान का दो, तीन, चार, पाँच आदि समय से लेकर यथायोग्य अंतर्मुहूर्त काल के बीच का काल नौवें गुणस्थान का मध्यमकाल है; वह भी मरण की ही अपेक्षा से है। गमनागमन अपेक्षा विचार - गमन - 1. उपशमक अथवा क्षपक अनिवृत्तिकरण गुणस्थानवर्ती मुनिराज ऊपर की ओर सूक्ष्मसापराय गुणस्थान में ही गमन करते हैं। 2. उपशम श्रेणी से उतरते समय अनिवृत्तिकरण गुणस्थानवर्ती मुनिराज उपशम अपूर्वकरण गुणस्थान में ही गमन करते हैं।