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________________ अनिवृत्तिकरण गुणस्थान 195 1. मुनिराज के जिस वीतराग परिणाम के निमित्त से चारित्रमोहनीय कर्म की 21 प्रकृतियों के उपशमन के कार्य की तैयारी अपूर्वकरण गुणस्थान के प्रथम समय से प्रारम्भ होती है और तदनन्तर नववें गुणस्थान के अंतिम समय पर्यंत मात्र सूक्ष्म लोभ कषाय को छोड़कर 20 कषायों एवं समग्र नोकषायों का पूर्ण उपशम हो जाता है; उस वीतराग परिणाम को उपशमक अनिवृत्तिकरण गुणस्थान कहते हैं। 2. मुनिराज के जिस वीतराग परिणाम के निमित्त से चारित्र मोहनीय गुणस्थान के प्रथम समय से प्रारम्भ होती है और तदनन्तर नववें गुणस्थान के अंतिम समय पर्यंत मात्र सूक्ष्म लोभकषाय को छोड़कर 11 कषायों एवं 9 नोकषायों का पूर्ण क्षय हो जाता है; उस वीतराग परिणाम को क्षपक अनिवृत्तिकरण गुणस्थान कहते हैं। अनिवृत्तिकरण बादरसांपराय प्रविष्ट शुद्धिसंयत का स्पष्टीकरण - ___ शब्दार्थ - अ + निवृत्ति = अनिवृत्ति / अ = नहीं। निवृत्ति = भेद, करण = परिणाम / अनिवृत्तिकरण = भेदरहित, सुनिश्चित समान परिणाम / ___ बादर = स्थूल / सांपराय = कषाय / प्रविष्ट = प्रवेश प्राप्त / शुद्धि = शुद्धोपयोग / संयत = शुद्धात्मस्वरूप में सम्यक्तया लीन / ___ चारित्रमोहनीय कर्म की 21 प्रकृतियों के उपशम तथा क्षय में निमित्त होनेवाले संज्वलन कषाय के मंदतम उदयरूप स्थूल कषाय के सद्भाव में सुनिश्चित उत्तरोत्तर विशिष्ट वृद्धिंगत, स्वरूपलीन शुद्धोपयोग परिणाम युक्त जीव अनिवृत्तिकरणबादरसांपरायप्रविष्टशुद्धिसंयत है। सम्यक्त्व अपेक्षा विचार - ___ द्वितीयोपशम और क्षायिक सम्यक्त्व - इन दोनों सम्यक्त्वों में से यहाँ एक सम्यक्त्व रहता है। यदि मुनिराज उपशमक अनिवृत्तिकरण गुणस्थानवर्ती हों तो उन्हें द्वितीयोपशम सम्यक्त्व और क्षायिक सम्यक्त्व इन दोनों में से कोई एक सम्यक्त्व रहता है। यदि मुनिराज क्षपक अनिवृत्तिकरण गुणस्थानवाले हों तो उन्हें क्षायिक सम्यक्त्व ही रहता है।
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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