________________ अपूर्वकरण गुणस्थान 183 भी अपवाद नहीं है। क्षपक अपूर्वकरण गुणस्थानवर्ती महामुनिराज आठवें के प्रथम समय से वे मात्र यथायोग्य तीन अंतर्मुहूर्त के बाद निश्चित ही क्षायिक चारित्रवंत हो जाते हैं। इसकारण अपूर्वकरण गुणस्थान के प्रथम समय से ही क्षायिक चारित्र उपचार से कहने में कुछ भी आपत्ति नहीं है। वास्तविकरूप से सोचा जाय तो छठवें-सातवें गुणस्थान से लेकर दसवें सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान के अंतिम समय पर्यंत क्षायोपशमिक चारित्र ही घटित होता है। काल अपेक्षा विचार - जघन्यकाल - यदि कोई मुनीश्वर उपशमक अपूर्वकरण गुणस्थान में कम से कम काल रहेंगे तो मात्र एक ही समय रह सकते हैं। जैसे - कोई महामुनिराज उपशांतमोह गुणस्थान से उतरते समय नीचे अपूर्वकरण गुणस्थान में मात्र एक समय ही रह सके और उन महामुनिराज के मनुष्यायु का क्षय हो गया, तो मरण की अपेक्षा अपूर्वकरण गुणस्थान का जघन्य काल एक समय घटित होता है। 77. प्रश्न : आपने यह कथन क्षपक अपूर्वकरण गुणस्थानवर्ती मुनिराज के ऊपर क्यों घटित नहीं किया ? उत्तर : भाई ! क्षपकश्रेणी पर आरूढ़ मुनिराज का मरण होता ही नहीं, यह अकाट्य नियम है; क्योंकि वे अप्रतिहत पुरुषार्थ के बल से कर्मों का उत्तरोत्तर क्षय करते हुए क्षपकश्रेणी पर आरोहण कर रहे हैं और शीघ्र पूर्ण वीतरागता को प्राप्त करेंगे। अतः क्षपक मुनिराज के लिए मरण की अपेक्षा जघन्य एक समय नहीं घटता; इसलिए नहीं घटाया। 78. प्रश्न : आठवें उपशमक अपूर्वकरण में आनेवाले सातिशय अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती मुनिराज को क्यों नहीं लिया ? उत्तर : उपशमश्रेणी चढ़नेवाले मुनिराज आठवें गुणस्थान के पहले भाग में मरते ही नहीं हैं - ऐसा कथन आगम में आया है। अतः आठवें उपशमक अपूर्वकरणवाले मुनिराज को नहीं लिया।