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________________ देशविरत गुणस्थान 52. प्रश्न : संमूर्छन जीव तो असंज्ञी होते हैं और असंज्ञी जीवों को जब सम्यग्दर्शन ही नहीं होता, तो उनको पाँचवाँ गुणस्थान कैसे हो सकता है ? ___उत्तर : संमूर्च्छन जीव असंज्ञी-संज्ञी दोनों होते हैं, यह कथन स्वयंभूरमण समुद्र में निवास करनेवाले संमूर्छन तिर्यंचों की मुख्यता से है। धवला पुस्तक 4, पृष्ठ 366 पर इसका उल्लेख इसप्रकार है कि मोहनीय कर्म की 28 प्रकृतियों की सत्तावाला तिर्यंच या मनुष्य मिथ्यादृष्टि, संज्ञी, पंचेन्द्रिय संमूर्छन, पर्याप्त मंडुक, मच्छ, कच्छप आदि तिर्यंचों में उत्पन्न होते हैं। गमनागमन अपेक्षा विचार - गमन - 1. कोई पंचम गुणस्थानवर्ती द्रव्यलिंगी मुनिराज पहले जितना शुद्धात्मा का आश्रय ले रहे थे, उससे भी विशेष अधिक रीति से निज शुद्धात्मा का आश्रय लेकर अर्थात् शुद्धोपयोग द्वारा ही अप्रमत्तविरत गुणस्थान में गमन करने से भावलिंगी मुनिराज हो जाते हैं। भावलिंगी पंचमगुणस्थानवर्ती श्रावक हो अथवा पंचमगुणस्थानवर्ती द्रव्यलिंगी मुनिराज हों, वे पाँचवें से - 2. चौथे गुणस्थान में अथवा 3. तीसरे गुणस्थान में अथवा औपशमिक सम्यक्त्व के साथ हों तो, 4. दूसरे गुणस्थान में गमन करता है। 5. परिणामों में विशेष अध:पतन होने के कारण सीधे मिथ्यात्व गुणस्थान में भी गमन कर सकते हैं। आगमन - 1. प्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती भावलिंगी मुनिराज सीधे देशविरत में आ सकते हैं। ____2. चौथे गुणस्थानवर्ती द्रव्यलिंगी मुनिराज अथवा द्रव्यलिंगी श्रावक देशविरत गुणस्थान में आ सकते हैं। ___3. प्रथम गुणस्थानवर्ती द्रव्यलिंगी मुनिराज अथवा द्रव्यलिंगी श्रावक भी सीधे इस देशविरत गुणस्थान में आ सकते हैं।
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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