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________________ देशविरत गुणस्थान उत्तर : दोनों साधकों में दो दृष्टि से अन्तर हो सकता है। सामान्य अपेक्षा से विचार किया जाय तो अनेक वर्षों से सातवी प्रतिमा की साधना करनेवाले की वीतरागता विशेष अधिक होनी चाहिए; क्योंकि उनके प्रत्याख्यानावरण कषाय कर्म का उदय मंद हो गया है। यदि आज का सातवी प्रतिमाधारक विशेष पुरुषार्थी है तो वह पुराने सातवीं प्रतिमाधारक से भी अपनी पर्याय की योग्यता से अधिक वीतरागता प्रगट कर सकता है। व्यक्त वीतरागता का हीनाधिक होना, यह उस साधक जीव के निजशुद्धात्मा के आश्रयरूप पुरुषार्थ पर निर्भर है। सम्यक्त्व अपेक्षा विचार - देशविरत नामक पंचम गुणस्थानवर्ती श्रावक को औपशमिक, क्षायोपशमिक और क्षायिक - इन तीनों सम्यक्त्वों में से कोई भी एक सम्यक्त्व रह सकता है। चारित्र अपेक्षा विचार - ___ पंचम गुणस्थानवर्ती व्रती श्रावक को संयमासंयम चारित्र होता है। यहाँ अप्रत्याख्यानावरण कषाय कर्मों के वर्तमानकालीन सर्वघाति स्पर्धकों का उदयाभावी क्षय, उन्हीं के भविष्य में उदय आनेयोग्य सर्वघाति स्पर्धकों का सद्वस्थारूप उपशम तथा प्रत्याख्यानावरण कषाय कर्म का उदय रहता है; अत: पंचम गुणस्थानवर्ती को चारित्रमोहनीय कर्म का क्षयोपशम होता है। (धवला पुस्तक 1, पृष्ठ 175, 176) ___चौथे अविरतसम्यक्त्व गुणस्थान में अनंतानुबंधी के अनुदय से चारित्र में सम्यक् पना हो जाता है; क्योंकि सम्यग्दर्शन के साथ ज्ञान और चारित्र - दोनों सम्यक् हो ही जाते हैं। देशविरत गुणस्थान में ऊपर चारित्र मोहनीय कर्म का क्षयोपशम घटित करके दिखाया गया है; लेकिन देशचारित्र को क्षायोपशमिक चारित्र नहीं कहते हैं। क्षायोपशमिक चारित्र ऐसा नाम तो सकल चारित्र को ही दिया जाता है। तत्त्वार्थसूत्र ग्रंथ के दूसरे अध्याय के पांचवें सूत्र में क्षायोपशमिक भाव के अठारह भेद बताये गये हैं। उनमें क्षायोपशमिक चारित्र और संयमासंयम देशचारित्र भिन्न-भिन्न गिनाये गये हैं।
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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